Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० गीतिका बान्धव ! मोह रूपी मदिरा का पान करके तू स्वरूप भूल बैठा है, किन्तु क्षण भर स्वस्थ बन और चिन्तन कर कि 'मैं कौन हूँ ?' 'मैं कौन हूँ ?' 'मैं कौन हूँ ?' 'मैं कौन हूँ ?' ऐसा चिन्तन कर 'मैं वही हूँ ?' ( सिद्ध स्वरूप ) ' मैं वही हूँ' ऐसा प्रतिपल अनुभव कर । १. जब तक तुझे निज स्वरूप का भान नहीं होता तब तक शान्ति की उपलब्धि नहीं हो सकती । अरे ! आत्म-स्वरूप स्वर्ण को छोड़कर तू विषय-वासना रूप लोहा क्यों खरीदना चाहता है ? २. तेरे लिए पर भावों में प्राप्त करने योग्य कुछ भी नहीं है । अपने स्वरूप में ही सब कुछ ग्राह्य तत्त्व है । ज्ञानमय आत्मा सचमुच कामधेनु है, वह तेरे अन्दर विराजमान हैं उसका दोहन कर और सहजानन्द रूप दूध का पान कर । ३. निरन्तर अपनी मृत्यु को याद रख, क्योंकि करणी के अनुसार ही फल भुगतने पड़ेंगे। यदि नीम का वृक्ष लगायेगा तो आम का रसास्वादन कैसे होगा ? ४. 'चन्दन !' यह सतत कल्याणकारी तेरी आत्मा का स्वरूप हमेशा ज्ञानमय विलसित हो रहा है । इस अपूर्व गुणराशि के साथ तू तन्मय बन । For Private And Personal Use Only २६

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