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गीतिका
भगवान महावीर ने संसार में चार अंग दुर्लभ बतलाए हैं । उनमें पहला अंग मनुष्यत्व है, क्योंकि इसी से सब कुछ साधा जा सकता है ।
मित्र ! मनुष्य का शरीर पुनः पुनः सुलभ नहीं । भाग्य संयोग से ही इसमें अवतरण हुआ है ।
१. इसी शरीर से दान दिया जा सकता है । यहीं पर घील का पालन किया जा सकता है । तप करने की भी इसी शरीर में योग्यता है ।
२. शास्त्रों के श्रवण का यहां पर ही अवसर है, सद्गुरु की संगति यहीं सुप्राप्य है और तत्व का अन्वेषण करने में भी यही शरीर समर्थ है |
३. ज्ञानी इसी शरीर को मोक्ष दाता (मोक्ष का कारणभूत) मानते हैं । आत्मिक सुखों की परिपुष्टि करने वाला भी इसे ही मानते हैं और भव जंगल से बाहिर जाने का यही एक विशिष्ट मार्ग है, ऐसा स्वीकार करते हैं ।
४. 'चन्दन मुनि' का कथन सुनकर उद्योगी बनकर साधना करो । साध्य तत्व की शीघ्र साधना करो, तुम्हें अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होगी यह ज्ञानियों का कथन है ।
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