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पदार्थ प्रतिक्षण पर्याय दृष्टि से परिवर्तित हो रहे हैं । संसार में वह'ध्रुव तत्त्व क्या है' क्या कभी तूने पर्यालोचन किया है ?
गीतिका
प्रातःकाल जो कुछ देखा, वह संध्या समय दिखाई नहीं देता । इस परिवर्तनशील संसार चक्र में 'सत्' क्या है ? [तूने कभी निश्चय किया है ?
१. मोहरूपी अन्धकार की सघनता के कारण कुछ भी मान नहीं हो पा रहा है | ज्ञान-दीप के आलोक में जगत का स्वरूप क्या है, कभी ऐसा मनन किया है ?
२. विभिन्न मनीषियों की विचित्र मान्यताएं हैं । उनमें से सिद्धान्त रूपेण तूने किसे स्वीकार किया है ?
३. "पुरुष ! तू किस उद्देश्य से यहाँ आया है ? क्या कुछ करके जाने वाला है ? तेरी अपनी वस्तु क्या है और स्वरूप से भिन्न तत्व क्या है ?”
४. ये उपर्युक्त प्रश्न यदि कोई तेरे से पूछेगा तो तू क्या प्रत्युत्तर देगा ? कुछ चिन्तन कर, अभी तक इनका तूने कुछ भी समाधान नहीं खोजा है । ५. 'चन्दन' ! इस माया जाल को दूर ही से ही नमस्कार कर । वस्तुतया आत्म-संधान के सिवा सब कुछ मिथ्या है |
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