Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतिका भव्य ! तू अपने आयुष्य को इन्द्र धनुष के समान, संध्या की लालिमा के समान, स्वप्न राज्य के समान और विद्युत के प्रकाश के समान क्षणिक समझ । तु विलम्ब क्यों कर रहा है ? यह तेरा आयष्य दर्भ के अग्रभाग पर ठहरी हुई ओस की कणिकाओं के समान तुरन्त विलीन होनेवाला है । १. 'समयं गोयम ! मा पमायए' यह शास्त्र का वाक्य क्या सूचित कर रहा है, इस पर तू जरा ध्यान दे । यहाँ अमृत पीने का मौका है फिर भी तू जहर पीना क्यों चाहता है ? २. लाख उपाय करने पर भी गुजरा हुआ समय वापिस नहीं लौटता, किन्तु आते हुए समय को ही सरलता से पकड़ा जा सकता है, अर्थात् पहले की सावधानी से ही समय का सदुपयोग हो सकता है । ३. सुपात्र को दान दे, ब्रह्मचर्य का पालन कर, तपस्या से तन को तपा और हमेशा पवित्र भावना रख, जिससे तेरा मनप्य जन्म सफल बन जाए। . 'चन्दन !' सत्पुरुषों की शिक्षा सुन, सुन-सुन कर उसका आचरण कर, क्योंकि आचरण से ही साधना का नवनीत प्राप्त होते हैं । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50