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गीतिका
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यौवन का वेग बह चुका, शरीर में शिथिलता छा गई, इन्द्रियां शक्तिहीन हो चलीं, फिर भी तेरी आसक्ति नहीं गई ?
खेद का विषय है ! शारीरिक शक्ति क्षीण हो गई पर आसक्ति नहीं गई।
१. इन्द्रियों का समूह मृतप्राय हो चला, फिर भी काम-वासना शान्त नहीं
हुई । शब्दों में केवल विरति का प्रदर्शन करता है, किन्तु आसक्ति
नहीं गई ? २. दाँत काम नहीं देते. खाया हुआ भी उदर में अच्छी तरह नहीं पचता,
फिर भी खाद्य पदार्थों की आसक्ति नहीं गई ? ३. हाथों में कम्पनवात होने से ठीक तरह कलम भी नहीं पकड़ी जाती, फिर
भी असत्य लेख आदि लिखने की आसक्ति नहीं गई ? ४. स्पष्टतया बोल भी नहीं सकता, परिजन कहना भी नहीं मानते. फिर
भी जवानी में किए हुए अपने कपट पूर्ण व्यवहारों को सुनाने की आसक्ति
नहीं गई ? ५. 'यह वृद्ध क्यों नहीं मरता' ऐसा जन-जन के द्वारा कहा जा रहा है,
फिर भी "मैं लम्बे समय तक जीता रहूँ," ऐसी आसक्ति नहीं गई ? ६. 'इन्द्रजाल के समान संसार है' ऐसा हमेशा सूचित किया जाता है, चन्दन
मुनि' कहता है, फिर भी संसार की आसक्ति नहीं जाती।
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