Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतिका - - यौवन का वेग बह चुका, शरीर में शिथिलता छा गई, इन्द्रियां शक्तिहीन हो चलीं, फिर भी तेरी आसक्ति नहीं गई ? खेद का विषय है ! शारीरिक शक्ति क्षीण हो गई पर आसक्ति नहीं गई। १. इन्द्रियों का समूह मृतप्राय हो चला, फिर भी काम-वासना शान्त नहीं हुई । शब्दों में केवल विरति का प्रदर्शन करता है, किन्तु आसक्ति नहीं गई ? २. दाँत काम नहीं देते. खाया हुआ भी उदर में अच्छी तरह नहीं पचता, फिर भी खाद्य पदार्थों की आसक्ति नहीं गई ? ३. हाथों में कम्पनवात होने से ठीक तरह कलम भी नहीं पकड़ी जाती, फिर भी असत्य लेख आदि लिखने की आसक्ति नहीं गई ? ४. स्पष्टतया बोल भी नहीं सकता, परिजन कहना भी नहीं मानते. फिर भी जवानी में किए हुए अपने कपट पूर्ण व्यवहारों को सुनाने की आसक्ति नहीं गई ? ५. 'यह वृद्ध क्यों नहीं मरता' ऐसा जन-जन के द्वारा कहा जा रहा है, फिर भी "मैं लम्बे समय तक जीता रहूँ," ऐसी आसक्ति नहीं गई ? ६. 'इन्द्रजाल के समान संसार है' ऐसा हमेशा सूचित किया जाता है, चन्दन मुनि' कहता है, फिर भी संसार की आसक्ति नहीं जाती। For Private And Personal Use Only

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