Book Title: Suttagame 01 Author(s): Fulchand Maharaj Publisher: Sutragam Prakashan Samiti View full book textPage 6
________________ सुत्तागमे पर लोकमत (नं. १) "श्रीपुप्फभिक्खु द्वारा सम्पादित 'आचारांग' का मैने भली भांति अवलोकन किया है, धर्मोपदेष्टाजीका यह प्रयास प्रशंसनीय है, संपादन बहुत ही सुंदर बना है, विशेषतः स्वाध्यायप्रेमियों के लिए इस शैलीसे अन्य सूत्रोका भी संपादन हो । मुद्रणकलाकी दृष्टिसे भी रमणीय रहा है, आगमप्रेमी सज्जनगण इस प्रयासमें अधिकसे अधिक सहयोग देकर जिनवाणीका प्रचार करेंगे।" पूज्य श्रीपृथिवीचंद्रजी महाराज, आगरा (लोहामंडी) (नं. २) "श्रीधर्मोपदेष्टाजी द्वारा संपादित 'आचारांगसूत्र' मैंने ध्यानपूर्वक देखा है, संपादनकी शैली सुंदर और युगानुकूल है, स्वाध्यायप्रेमियोके लिए और साधु-साध्विओके लिए यह संस्करण वहुत ही उपयुक्त सिद्ध होगा । मुद्रणकलाकी दृष्टिसे भी प्रस्तुत ग्रंथ वड़ा रमणीय दीख पड़ता है, शुद्धिपर काफी ध्यान रक्खा गया है, आचारांग का प्रस्तुत संस्करण समाजमें अधिकाधिक स्थान ग्रहण करे, यही हार्दिक अभिलापा है, पुस्तक मुझे पसंद है।" कविरत्न, उपाध्याय श्रीअमरचंदजी महाराज, जैनसुनि कुंदनभवन व्यावर (नं. ३) “यह लघुपुस्तिका लघु होते हुए भी परमोपयोगी है, नित्यपाठ करनेवालोंके लिए यह नित्यकी सहायिका है, इसका प्रकाशन भी बहुत सुंदर हुआ है। इस प्रेमोपहारके लिए जैलसुनि पं. श्रीहेमचंद्रजी महाराजने आपका और णायपुत्तमहावीरजइणसंघाणुआई लहुअम पुप्फभिक्खू का शतशः धन्यवाद किया है और हार्दिक कृतज्ञता प्रगट की है, तथा मुनिश्रीको सस्नेह सुखसाता पूछी है।" लमाला मंडी पटियाला (पंजाव) भगवालदास ब्रजलाल जैन वजाज (नं. ४) "मैंने श्रद्धेय मुनि श्रीफूलचंदजी महाराज द्वारा संपादित आचारागसूत्रके प्रथमश्रुतस्कंध के मूल संस्करण को देखा, इसे पढ़कर मै अत्यधिक आनंदित हुआ, इस प्रकार के सुंदर प्रकाशन के लिए मुनिश्री धन्यवाद के पात्र हैं।" श्रीमान् श्रद्धेय प्रवर्तक स्वामीजी श्री श्री हजारीमलजी म. जैन स्थानक ब्यावरPage Navigation
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