Book Title: Suttagame 01 Author(s): Fulchand Maharaj Publisher: Sutragam Prakashan Samiti View full book textPage 4
________________ णमोऽत्थु णं समणस्स भूगरओ णाययुत्त-महावीरस्स ८. कृतज्ञताप्रकाश जताप्रकाशा जिसप्रकार स्थापत्यकलाकोविद अपनी मस्तिष्क शक्तिका उपयोग करके मालिकके आदेश-निर्देशमें तत्पर होकर एक सुंदर प्रासादका निर्माण करता है उसी भाँति मेरे अन्तेवासी प्रशिष्य आयुष्मान 'जिणचंदभिक्खू ने अपनी विनयता, मृदुता, भक्ति-वैयावृत्यसेवातत्परता, दक्षता और प्राकृतविज्ञानकलामर्मजता आदि सद्भावनाओंमें तन्मय होकर 'सुत्तागमे के प्रकाशन संबंधी कार्य तथा प्रूफसंशोधनादिकी सेवाका सहयोग देकर ज्ञातपुत्र महावीर भगवान्की शासनसेवा, और जिनवाणीकी भक्तितत्परता द्वारा खूब ही साथ दिया है। भला इस कीमती सेवा के मृदु संस्मरणोंको कैसे भुलाया जासकता है। मै इस मूल्यवान् सेवाकी बड़ी कदर करता हूं। आखिर मनुष्य दो प्रकारके ही तो होते हैं एक उपकार करनेवाला और दूसरा उपकारज। पुप्फभिक्खूPage Navigation
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