Book Title: Subodhi Darpan Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 4
________________ ( ३ ) प्रांतादि में धर्मप्रचारार्थ भ्रमण किया, ईटर आदि स्थानों के शास्त्र भंडार खुलवाए, धर्म पाठशालाएँ व सभाएं स्थापित कराई जैन संस्कारों का भी प्रचार किया, इत्यादि । पश्चात् आप सन् १६१२ में लगभग ५ वर्ष तक इलाहा बाद के सुमेरुचन्द्र दिगम्बर जैन होस्टल में सुपरिन्टेडेन्ट तथा धमशिक्षक का कार्य करते रहे, वहां से श्रीमान् मान्यवर न्यायाचार्य पंडित गणेशप्रसाद जी वर्णी की प्रेरणा से सन् १९१६ में आप सागर आगए और सत्तर्कसुधातरङ्गिणी दिगम्बर जैन पाठशाला के गृहस्पति पद पर रहे। यहां उक्त वर्णी जी महाराज के सत्संग से आपको अध्यात्म रुचि होगई, दैववश यहां ही वर्णी जी की पूज्य मातेश्वरी [ जमनाबाई उर्फ इन्द्रानी बहू ] का अचानक ऊपर से गिर जाने के कारण सन् १६१८ में उन से सदा के लिये वियोग होगया. इस घटना से वर्णी जी के हृदय पर बड़ा आघात पहुंचा, और वह कुछ ही दिनों में संसार से उदासीनता में परणित होगया, तभी से उन्होंने यह सवैतनिक कार्य करना छोड़ दिया और कुछ दिन बनारस विद्यालय में उदासीन रूप से ठहरे पश्चात् कुछ दिन द्रव्य क्षेत्र काल भाव का खाश अनुभव प्राप्त करने लिये, उदासीन आश्रमों व त्यागीजनों के सहवास में अनेकों जगह रहे, अंत में आपने कटनी में- सन् १९१६ में श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य को अपना दीक्षादाता धर्म गुरु मानकर, मान्यवर न्या० श्रीमान् पं०. गणेशप्रसाद जी वरणको साक्षी से श्रावक के बारह व्रत धारण किये और अभी मध्यम श्रावक [ सप्तम प्रतिमा ] व्रत का पालन कर रहे हैं, घर की सम्पत्ति जो कुछ थी, उसमें से थोड़ी नक्कद रकम अपने लिये ·Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 84