Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 9
________________ .. 18] विषय विषय . पृष्ठ . विषय पृष्ठ : संयम-असंयम ६०-६५/ उत्कल (उत्कट) ८९-९० आचार, आचार प्रकल्प व. . ६५-६६/ समितियाँ ८९-९०. आरोपणा के भेद ६५-६६ जीव के पांच भेद ९०-९३ वक्षस्कार पर्वत ६७-६९/ गति आगति ९०-९३ पांच महाद्रह ६७-६९/ पांच प्रकार के सर्व जीव ९०-९३ समय क्षेत्र ६७-६९/ योनि स्थिति । ९०-९३ . अवगाहना ६७-६९ संवत्सर के भेद ९०-९३ सुप्त से जागृत होने के कारण ६९ जीव के निर्याण मार्ग ९४-९६ अपवाद सूत्र ६९-७० | पांच प्रकार का छेदन ९४-९६ आचार्य उपाध्याय के अतिशय ___७१-७२ आनन्तर्य पांच ९४-९६ गणापक्रमण के कारण . ७३-७४ अनन्तक पांच ९४-९६ ऋद्धिमान् के भेद | ज्ञान के पांच भेद ९६-१०१ तृतीय उद्देशक ज्ञानावरणीय के ५ भेद ९६-१०१ . अस्तिकाय पांच ९६-१०१ पांच गतियाँ ७४-७८ | प्रत्याख्यान पांच ९६-१०१ इन्द्रियों के विषय ७८-८० | पंच प्रतिक्रमण ९६-१०१ मुंड पांच | वाचना देने और सूत्र सीखने के बोल १०१-१०२ . पांच बादर और अचित्तवायु | पांच वर्ण के देव विमान १०२-१०४ निर्ग्रन्थ पांच | कर्म बंध १०२-१०४ वस्त्र और रजोहरण १०२-१०४ निश्रा स्थान, निधि,शौच ८४-८६/ कुमारवास में प्रव्रजित तीर्थंकर १०२-१०४ छद्मस्थ और केवली का विषय |सभाएं पांच १०२-१०४ महानरकावास, महाविमान | पांच तारों वाले नक्षत्र १०२-१०४ पांच प्रकार के पुरुष ८६-८८ पाप कर्म संचित पुद्गल। १०२-१०४ मत्स्य और भिक्षुक ८६-८८ छठा स्थान वनीपक पांच ८६-८८ गणी के गुण १०५-१०६ अचेलक ८९-९०. साध्वी अवलम्बन के कारण १०५-१०६ • ७४-७८ स्वाध्याय पांच ७८-८० ८३-८४/ पांच महानदियाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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