Book Title: Stambhanadhish Prabandh sangraha Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ प्रतिमाना स्थाने अत्यारे (कर्ताना समयमां) अन्य प्रतिमा होवानुं विधान, -आ बधी वातो इतिहासनी वेरविखेर शृंखला समी छे ज. अने कर्ता स्वयं चोखवट करे छे के - 'आ वात (शंखेश्वरनी प्रतिमानी वात) मने योनिप्राभृतना संकेतथी जाणवा मळी छे, माटे कोईए भ्रांति न करवी.' २. स्सयोगी नागार्जुने रससिद्धि माटे स्तंभनपार्श्वनाथ-प्रतिमानुं आलंबन लीधेलं, त्यारथी ते प्रतिमानुं नाम-रसस्तंभन थवाथी-'स्तंभन' पार्श्वनाथ पडेलुं. ते प्रतिमा द्वारा ज्यां रससिद्धि मेळवी, ते 'सेढी' नदीना कांठाना गामनुं नाम पण त्यारथी स्तंभनपुर पड्यु-एम आ ग्रंथकार वर्णवे छे (प्र.३१). अंने ए स्तंभनपुर ते आजनुं थामणा - उमरेठ पासेनुं गाम. स्तंभन→थंभण→थमण→थामण, (स्तंभनक परथी थामणा). ३. थामणा क्षेत्रमाथी स्तंभनपार्श्वनाथनी ए प्रतिमा कालांतरे खंभातस्तंभनतीर्थे आवी होवानुं तो जगजाहेर छे. पण ते कया वर्षमां अने शा माटे आवी तेनी विगत क्यांय मळती नथी. आ ग्रंथमा प्रथमवार आ विगत आ प्रमाणे मळे छे: १३६८ वर्षे इदं च बिम्बं श्रीस्तम्भतीर्थे समायातं-भविकानुग्रहणाय ।।" (प्र. ३२) अत्यारे सामान्य मान्यता एवी छे के थामणामां देरासर हतुं अने त्यां आ प्रतिमा पूजाती हती, पण मुस्लिम आक्रमणना कारणे प्रतिमा खंभात लई जवाई हती; आ वात हवे ऊपरनो संदर्भ जोतां बिनपायादार ठरे छे. . आ ग्रंथनी मात्र एक ज प्रति अद्यावधि मळी हे जे उपरथी अटकळ थाय छे के आ रचनाने परंपराए बहु आदर के संमति नथी आपी. नवी वात आवे त्यारे तेनो जलदी स्वीकार भाग्ये ज थतो होय छे. एक प्रति मळे छे ते पाटणना श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडारनी छे (डा. ३१२, नं. १४९६५). ९३ पत्रोनी आ प्रति. ग्रंथनी रचना (सं. १४१३) थयाना ११ वर्षे ज (सं. १४२४) लखायेली होवाथी प्रमाणमां शुद्ध छे. आ प्रतिनी प्रेस कोपी आगमप्रभाकर पूज्य मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजे वर्षो अगाऊ करावेली हती, तेना आधारे तेमज पाटणनी प्रतिनी झेरोक्स नकलना आधारे आ ग्रंथ संपादित करी अत्रे रजू को छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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