Book Title: Srngaramanjari Katha
Author(s): Bhojdev, Kalpalata K Munshi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

Previous | Next

Page 87
________________ 64 SRNGARAMANJARIKATHA naturally be complementary to each other. The conjecture may, therefore, be hazarded that one - SP - is a theoretical work whose theories the other --- SMK - demonstrates; in other words, the stories of the SMK have been written to exemplify the technical differences mentioned in the Sp. This conjecture derives strong, support from the following references in the text. शृंगारमंजरी शंगारप्रकाश ...अन्यमनस्का बहप्रकाराः पुरुषा भवन्ति व तत्र संक्षेपपक्षे रागोपाधिः प्रेमापि द्वादशप्रकार ...तत्र रागोऽपि तावत् प्रथमाकलनीयः। ... स च भवति । रागो द्वादशधा नीलीरागः,रीतिरागः, अक्षीबरागः, मंजिष्ठारागः, कपायरागः, सकलरागः कुसुम्भरागः, लाक्षारागः, कर्दमरागः, हरिद्रारागः, रोच- तत्र हरिद्रारागं, रोचनरागं, कांपिल्यराग, नारागः, कांपिल्यरागः । तत्र नीलीरागः, रीति- रीतिरागं इति सात्त्विकस्य। कुसुम्भरागं, रागः, अक्षीबराग इत्येको वर्ग: मंजिष्ठारागः, लाक्षाराग, अक्षीबरागं, मंजिष्ठारागं इति राजकषायरागः, सकलराग इत्यपरः। कुसुम्भरागः, सस्य । कर्दमरागं, कपायरागं, मकलरागं, नीलीलाक्षारागः, कर्दमराग इत्यपरः। हरिद्रारागः, राग इति तामसस्य, तत प्रायेण पुरुषाणां रोचनारागः, कांपिल्यराग इति चतुर्थः । विशेष (षा) उपजायन्ते। प्रथमे नीलीरागवर्गे नीलीरागाद् रीतिरागा- अथैष विशिष्टनायकविषयो विशेषरूप उच्यते । क्षीबरागौ किंचिदस्थिरावपि नीलीरागप्रकाश- स च सात्त्विकादिनायकभेदात स्थिरास्थिरानाद दर्शितौ भवतः । मंजिष्ठारागवर्गे मंजिष्ठा- दितारतम्यात प्रबन्धन उपपाद्यमानो द्वादशरागात कषायरागसकलरागौ किचिदस्थिरा- प्रकार उत्पद्यते। वपि मंजिष्ठारागप्रकाशनात् प्रकाशितौ भवतः । कुसुम्भरागवगें कुसुम्भरागाल्लाक्षारागकर्दमरागौकिचिदस्थिरावपि कुसुम्भरागप्रदर्शनात् प्रतिकृतौ भवतः । हरिद्रारागवर्ग, हरिद्रारागाद रोचनारागकांपिल्यरागौ किंचिदस्थिरावपि हरिद्रारागप्रदर्शनात् प्रतिकृतौ भवतः। एवमयं यद्यपि द्वादशप्रकारो रागः प्रकाशितस्तथापीतरेषां चतुष्टयेऽन्तर्भावात् प्राधान्याच्चतुर्धव भवत्याः कुतूहलात् प्रदर्श्यते नीलीरागो मंजिष्ठारागो कुसुम्भरागो हरिद्रारागश्चेति। The classification of the Samayamātrkā into eight classes is based on specific materials like colours, metals etc. The division is too elaborate and mechanical and it has not the merit of being based upon the psychological working of men's minds. The following table will show the different natures and the illustrations of the rāgas.37 37. As far as the SP is concerned, in the following table I have relied upon the transcripts of the Ms. of the SP which were very kindly supplied by Dr. V. Raghavan. The incompleteness of details in some aspects is therefore due to the inaccessibility of the Ms. See Appendix II. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312