Book Title: Sramana 1994 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 9
________________ भारतीय दर्शन में मोक्ष की अवधारणा : 7 (ङ) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, मू. 68/177 (च) पंचसंग्रह, प्राकृत। 9. कदाचिदष्टसमयाधिकषण्मासाभ्यन्तरे चतुर्गति जीवराशितो निर्गतेषु.... ! . -- गोम्मटसार, जीवकाण्ड (जी.प्र.), 197/441/15 10. (क) सामान्यादेको मोक्षः । द्रव्यभाव भोक्तव्य भेदादनेकोऽपि। - राजवार्तिक, 1/7/14/40/25 (ख) धवला, 13/5,5,823/48/1 11. तं मुक्खं अविरुद्धं दुविहं खलु दव्व भाव गदं । - वृहद्नयचक्र, 159 12. निखशेषाणिकर्माणि येन परिणामेन... समस्तानां कर्मणां । - भगवतीआराधना, 38/134/18 (ख) कर्मनिर्मूलनसमर्थः... द्रव्यमोक्ष इति। - पंचास्तिकाय (ता.वृ.), 108/173/10 (ग) प्रवचनसार (ता.वृ.), 84/106/15 (घ) द्रव्यसंग्रह, टीका, 28/85/14 13. परमात्मप्रकाश, टीका, 2/4/117/13 14. (क) प्रज्ञापनासूत्र, पद 21 से 29, उ. 1,2 सूत्र 293-299 (ख) उत्तराध्ययनसूत्र, अध्याय 33 (ग) षट्खण्डागम, 13/5,5 सूत्र 19/205 (घ) तत्त्वार्थसूत्र, 8/4 (ङ) गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, मूल, 8/7 (च) द्रव्यसंग्रह, टीका, 31/90/6 (छ) बृहद्नयचक्र, 84 15. (क) तत्त्वार्थसूत्र, 8/5 (ख) गोम्मटसार कर्मकाण्ड, मूल, 22/15 (ग) षट्खण्डागम, 6/1, 9-1/सूत्र./पृ. 13/14,15/31, 17/34, 19/37, 25/48, 29/49, 45/77, 46/78 (घ) पंचसंग्रह, प्राकृत अधिकार, 2/4 16. (क) धवला, 14/5, 6, 71/52/6 (ख) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, मूल. 244/507 (ग) नियमसार, (ता.व. ), 107 17. दर्शन और चिन्तन, पं. सुखलालजी, अध्याय - कर्मवाद, पृ. 228 18. कर्म, कर्मबन्ध और कर्मक्षय, लेखक -- राजीव प्रचण्डिया, एडवोकेट, जिनवाणी मासिक पत्र (कर्मसिद्धान्त विशेषांक), 1984 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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