Book Title: Sramana 1994 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 25
________________ महावीर निर्वाण-भूमि पावा : एक समीक्षा ___ - डॉ0 जगदीशचन्द्र जैन [ स्व० डॉ० जगदीश चन्द्र जैन, अपनी विद्वत्ता, स्पष्टवादिता और तटस्थ दृष्टि के कारण जैन विद्या के क्षेत्र में सदैव सम्मान से देखे जाते रहे हैं। उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। संस्थान से प्रकाशित भगवान महावीर निर्वाण-भूमि पावा : एक विमर्श, लेखक-- भगवती प्रसाद खेतान पर उनकी समीक्षा हमें उनकी मृत्यु के पश्चात् प्राप्त हुई जिसे हम यहाँ ज्यों का त्यों प्रकाशित कर उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ] सम्पादक जैन समाज अपने तीर्थ स्थानों के प्रति सजग नहीं रहा, शायद यह सम्भव भी नहीं था। सैकड़ों-हजारों वर्षों से इतिहास को ज्यों का त्यों सुरक्षित रख सकना आसान नहीं। अनेक तीर्थ ऐसे हैं जो परम्परा में कायम नहीं रहे, अनेक तीर्थ विच्छिन्न हो गये उन्हें भुला दिया गया, कितने ही तीर्थ स्थानांतरित हो गये उनके स्थानों पर नये तीर्थों की कल्पना कर ली गई। नदियों की भीषण बाढ़ के कारण भी पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्री को कम क्षति नहीं पहुंची। गण्डक नदी की बाढ़ से वैशाली के बौद्ध-स्तूप, अचिरावती ( राप्ती) नदी की बाढ़ से सुप्रसिद्ध चेतवन विहार एवं अशोक स्तम्भ तथा बूढ़ी गंगा की बाढ़ से हस्तिनापुर जैसे नगरों का ध्वस्त हो जाना इसके उदाहरण हैं। एलेक्जेण्डर कनिंघम का सन् 1831 ई0 में भारत आगमन हुआ। वे इतने प्रतिभाशाली व्यक्ति थे कि अपने आगमन काल से ही अपने सैनिक कार्य-कलाप के अतिरिक्त उन्हें जो समय मिलता उसका प्रत्येक क्षण भारतीय पुरातत्त्व की खोज में लगाने के लिए जुटे रहे। भारतीय पुरातत्त्व विद्या के वे जनक कहे जाने लगे। यह उन्हीं की प्रेरणा का फल था कि भारत सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई। अपने कार्यकाल में उन्होंने कितने ही ऐसे दुर्लभ स्थानों की पहचान की जिनसे हम अपरिचित थे। सन 1862 से 1864 ई0 तक अनेक बार उन्होंने वैशाली का दौरा किया और अपने तर्कपूर्ण खोजों से सिद्ध कर दिखाया कि फाहयान और हवेनसांग के विवरणों में उल्लिखित वैशाली नगरी यही है जिसे महावीर भगवान् ने अपने जन्म से पवित्र किया था। ध्यान रहे कि इसके पूर्व के जैन धर्मानुयायी नालन्दा के समीप स्थित कुण्डग्राम अथवा मुंगेर जिले के लछुआड़ अथवा विशाला नाम से उल्लिखित उज्जयिनी को महावीर का जन्मस्थान स्वीकार करते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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