Book Title: Sramana 1994 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 31
________________ आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज : एक अंशुमाली : 29 ज्येष्ठ शिष्य रत्न नौ वर्ष में ही आपकी निष्ठा, संयमता व योग-प्रबलता की चर्चा दूर-दूर तक फैल गयी। रावलपिंडी में आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर ओसवालवंशी सर्वश्री ज्ञानचन्दजी आपके शिष्य बन गये। आप जहाँ पर भी जाते जनता आपकी कर्तव्य-परायणता, ब्रह्मचर्य, तेजस्विता व निकिता से प्रभावित होकर मुग्ध हो जाती थी। उपाध्याय पद इतिहास इस बात का साक्षी है कि पूज्य श्री आत्मारामजी म0 से पूर्व किसी मुनिराज को उपाध्याय के पद से विभूषित नहीं किया गया। तीस वर्ष की अल्पायु में ही संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं, जैन आगमों व दर्शनशास्त्र में आपकी गहरी पैठ को देखते हुए सं0 1968 में पूज्य श्री सोहनलालजी म० ने अमृतसर नगर की एक संगोष्ठी में आपको उपाध्याय पद से सुशोभित किया। जैनधर्म दिवाकर सं0 1990 में अजमेर में हुए धार्मिक सम्मेलन में आपकी शास्त्र-मर्मज्ञता से प्रभावित होकर आपको आगम-ज्ञाता के पद से सुशोभित किया गया। उसके बाद आपका चातुर्मास दिल्ली के महावीर भवन में हुआ। वहाँ पर आपने दस दिनों की अल्पावधि में ही तत्त्वार्थसूत्र व जैनागमसमन्वय की रचनाकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। आपकी प्रज्ञता से प्रभावित होकर आपको जैनधर्म-दिवाकर पद प्रदान किया गया। साहित्य रत्न सं0 1993 में जब युग-पुरुष श्री लालचन्दजी महाराज की स्वर्णजयन्ती मनाई गयी तो संस्कृत, प्राकृत, पाली आदि भाषाओं पर आपके अधिकार को देखते हुए पंजाब के समस्त श्रीसंघों ने आपको साहित्य-रत्न की उपाधि से सम्मानित किया। आचार्य पद पंजाब के निवासियों ने परम तेजस्वी आचार्यश्री सोहनलाल जी म0 एवं पूज्य श्री काशीरामजी म0 के आचार्य पद की गरिमा को देखा हुआ था। पूज्य श्री काशीरामजी म0 के देवलोकगमन के पश्चात जब सभी ने सर्वत्र दृष्टि डाली तो उनकी दृष्टि आपश्री पर जाकर टिकी। अतः श्री उदयचन्दजी म0 की देखरेख में सं0 2003 के चैत्रमास की शुक्लत्रयोदशी के दिन महावीर जयन्ती के महोत्सव पर सर्वसम्मति से आचार्य पद का प्रतीक चादर आपको ओढ़ाते हुए "नमो आयरियाण" के शब्दों से आपका अभिनन्दन किया। श्रमण संघीय आचार्य पद सं0 2009 में राजस्थान के सादड़ी नगर में आयोजित एक सम्मेलन में आपको श्रमणसंघीय आचार्य पद से अलंकृत किया गया। संघ के हित के लिए आप सदा निडर होकर कार्य करते रहे। यम (व्रत) की साधना तो कोई भी कर सकता है लेकिन संयम की साधना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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