Book Title: Sramana 1994 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ श्रमण : ४३ सम्पन्न नवगजरथ के अवसर पर यह स्मारिका ग्रंथ प्रकाशित किया गया है। ग्रंथ में अनेक मन्दिरों और उसमें स्थापित जिन प्रतिमाओं का सचित्र वर्णन है। यह सत्य है कि जैन मूर्तिकला के इतिहास में ललितपुर के आस-पास के क्षेत्र से एक समृद्ध परम्परा प्राप्त होती है। कृति में देवगढ़ की मूर्तियों का परिचय भी दिया है किन्तु देवगढ़ की क्षेत्र की प्रतिमाओं के चित्र नहीं दिये गये हैं। हमें यह जानकर अत्यन्त ही दुःख हुआ कि देवगढ़ की प्राचीन और आंशिक रूप से खण्डित प्रतिमाओं पर न केवल उनके पूजनीय बनाने की दृष्टि से उनके अंगों को उकरा गया अपितु उन सब पर चिह्न भी बना दिये गये। यह जैन कला के इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त ही दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि ये प्रतिमाएँ उस काल की हैं जब तीर्थंकर प्रतिमाओं के नीचे चिह्न बनाने की प्रथा नहीं थी। दुर्भाग्य से इस ग्रंथ में भी उन चिह्नों का उल्लेख किया गया है, जो घातक है। इस सम्पूर्ण ग्रंथ में मुनि श्री सुधासागर जी और आयोजकों के अनेक चित्र हैं। सम्भवत: यह सब धीरे-धीरे वैभव और अहं के प्रदर्शन का ही माध्यम बनता जा रहा है। यदि इस ग्रंथ की अपेक्षा किसी आगम का उद्धार हुआ होता तो अधिक संतोष की बात होती। पुस्तक - आचार्य ज्ञानसागर की साहित्य साधना प्रकाशक - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर, संघी जी जैन मन्दिर रोड, सांगानेर ( जयपुर ), आकार - डबल डिमाई मूल्य - ५०.०० रु०। जैन परम्परा में आधुनिक युग के कवियों में सर्वाधिक प्रभावशाली माने जाने वाले महाकवि परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज हुए हैं। इनके २१ वें समाधि-दिवस के संस्मरण के रूप में प्रकाशित "आचार्य ज्ञानसागर की साहित्य साधना" नामक पुस्तक जितनी विद्वज्जनों के लिए लाभदायी है, उससे कहीं अधिक जनसामान्य के लिए उपयोगी है। आचार्य श्री ने जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, श्री समुद्रदत्तचरित्र, दयोदय चम्पू, मुनि मनोरञ्जनशतक जैसे काव्यों को लिखकर उन्होंने अपनी सृजना शक्ति का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह विद्वानों के लिए एक आदर्श स्थापित करता है। जिन्हें उनके मूल साहित्य को पढ़ने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ है, वे इस पुस्तक में उनकी रचनाओं के विभिन्न आयामों पर जो विभिन्न विद्वानों के विविध लेख प्रकाशित हुए हैं उन लेखों को पढ़कर उनकी ज्ञानरूपी साहित्य साधना की अमर ज्योति से स्वयं तो प्रकाशित होंगे ही साथ ही इस ज्ञान ज्योति से औरों को प्रकाशित करने में भी सफल होंगे। यह पुस्तक साहित्य प्रेमियों के लिए वरदान सिद्ध होगी ऐसा मेरा विश्वास है। पुस्तक - चैतन्य चिंतन लेखक - श्री १०८ मुनि विरागसागरजी म० प्रकाशक - श्री सुवालाल चतुरभुज अजमेरा, नागौर ( राजस्थान ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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