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४२ : श्रमण
इस पुस्तक के लेखक मुनि जयानन्द विजय जी म० ने आगमों के एवं अन्य पुस्तकों के आत्महितकर पाठों को प्रश्नोत्तर रूप में संग्रहीत कर पुस्तकाकार रूप दिया है। जिससे वाचना लेने वाला और धर्म श्रवण करने वाला, धर्म का एवं धर्माचरण का वास्तविक स्वरूप समझ सके। इस पुस्तक में मुनि भगवन्तों के जीवनोपयोगी आगमोक्त सूत्रों एवं टीकाओं को विशेष स्थान दिया गया है।
पुस्तक धर्म साधकों एवं सामान्य जनों के लिए उपयोगी है। पुस्तक की भाषा सरल एवं सुबोध है तथा साज-सज्जा आकर्षक है । पुस्तक पठनीय है।
पुस्तक - दिशादर्शक ( प्रश्नोत्तरी )
अनुवादक - मुनि श्री जयानन्द विजय जी म०
प्रकाशक
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श्री गुरु रामचन्द्र प्रकाशन समिति, भीनमाल ( राजस्थान )
मूल्य पठन-पाठन
लेखक ने इस पुस्तक में श्री भद्रंकर सूरीश्वर जी म० कृत दशवैकालिक सूत्र के गुजराती विवेचन को हिन्दी में भाषांतरित करके प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत किया है. । दशवैकालिक सूत्र में मुख्य रूप से काया को सदाचारी बनाने हेतु उपदेश है। जिसमें प्रथम से षष्ठ अध्ययन तक गोचरी हेतु जाना, गोचरी ग्रहण करना, आचारों का पालन करना आदि बातें प्रधानता से हैं। सप्तम् अध्ययन में वचन को कुशल बनाने का मार्ग वर्णित है। अष्टम् अध्ययन में आचार का वर्णन किया गया है। नवम् अध्ययन मनोविजय का मुख्यता से विधान दर्शाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इस पुस्तक से साधकों को सदाचारी बनाने की प्रेरणा मिलेगी । कृति संग्रहणीय एवं पठनीय है।
प्रकाशक
संस्करण
पुस्तक - विश्व के कीर्ति स्तम्भ नव गज रथ प्रधान सम्पादक बा० ब्र० श्री अजीत जी 'सौंरई' सर्वोदय समिति, ललितपुर ( उ० प्र० ) प्रथम (१९९३)
मूल्य - १५१.०० रुपये
जैन परम्परा में जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठा के अवसर पर पंचकल्याणकों की परम्परा प्राचीन है। पंच कल्याणकों के अवसर पर गजरथ अर्थात् हाथियों से चालित रथों पर जिन प्रतिमाओं की यात्रा की परम्परा है। इसे ही गजरथ महोत्सव कहा जाता है। वस्तुतः पंचकल्याणक और गजरथ आदि जैन धर्म की प्रभावना के माध्यम माने गये हैं ।
किन्तु गजरथों की यह परम्परा वीतराग निर्ग्रन्थ की परम्परा में वैभव प्रदर्शन की परम्परा बन गयी है। मुनिजन व श्रावक इस बात में आत्मतोष मानते हैं कि हमने पंचकल्याणक के अवसर पर कितने गजरथों का प्रदर्शन करवाया। इसी होड़ में ललितपुर में
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