Book Title: Sramana 1994 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 34
________________ 32 : हीरालाल जैन सन् 1962 आरम्भ हो चुका था। आस-पास विचरने वाले 104 साधु व लगभग 40 साध्वियाँ आपके दर्शनों के लिए लुधियाना पहुँच चुके थे। 30-01-62 को प्रातःकाल दस बजे आपने अपच्छिम मरणान्तिक संलेखना करके अनशन धारण कर चतुर्विध आहार का त्याग कर दिया और अन्तर्ध्यान में लीन हो गये। 31 जनवरी को रात्रि के दो बजकर बीस मिनट पर, माघ कृष्ण नवमी के दिन आप अपने पौद्गलिक शरीर को त्यागकर उच्च देवलोक की ओर प्रस्थान कर गए। आज आप शारीरिक दृष्टि से हमारे बीच नहीं है लेकिन आपकी दिव्य रचनाएँ प्रभावी, साहसी एवं विनम्र व्यक्तित्व एवं रत्नत्रय की साधना आज भी आपको जीवित बनाए हुए है। आने वाला युग भी आपकी कृतियों का गुणगान करेगा। यही भाव उनके चरणों में अर्पित करते हैं। अन्त में शासन देव के चरणों में यह प्रार्थना करते हैं कि यह आत्म दीक्षा शताब्दी वर्ष भारत की अखण्डता का प्रतीक बने, विश्व मैत्री व शांति के लिए वरदान साबित हो एवं प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हर जन के मन में भाव उठे। जय महावीर ! संस्थापक : आचार्य सम्राट् श्री आत्मारामजी म0 जैन मेमोरियल ट्रस्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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