Book Title: Sramana 1993 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 10
________________ महायान सम्प्रदाय की समन्वयात्मक दृष्टि ऐसी लोकमंगल की सर्वोच्य भावना का प्रतिबिम्ब हमें आचार्य शान्तिदेव के शिक्षासमुच्चय नामक ग्रन्थ में मिलता है। हिन्दी में अनूदित उनकी निम्न पंक्तियां मननीय हैं : इस दुःखमय नरलोक में, जिनते दलित, बन्धग्रसित पीड़ित विपत्ति विलीन हैं, जिनते बहुधन्धी विवेक विहीन हैं। जो कठिन भय से और दारुण शोक से अतिदीन हैं, वे मुक्त हो निजबन्ध से, स्वच्छन्द हो सब द्वन्द्र से, छूटे दलन के फन्द से, हो ऐसा जग में, दुःख से विलखे न कोई, वेदनार्थ हिले न कोई, पाप कर्म करे न कोई, असन्मार्ग धरे न कोई, हो सभी सुखशील, पुण्याचार धर्मव्रती, सबका हो परम कल्याण, सबका हो परम कल्याण।१३ भोगवाद बनाम बैराग्यवाद भोगवाद और वैराग्यवाद भारतीय चिन्तन की आधारभूत धारणायें हैं। वैराग्यवाद निवर्तक धर्मों का मूल है तो भोगवाद प्रवर्तक धर्मों का। वैराग्यवाद शरीर और आत्मा तथा वासना और विवेक के द्वैत पर आधारित धारणा है। वह यह मानता है कि यह शरीर बन्धन का कारण है और समस्त अधर्मों का मूल है, अतः शरीर और इन्द्रयों की मांगों को ठुकराना ही श्रेयस्कर है। इसके विपरीत भोगवाद यह मानता है कि शरीर की मांगों की पूर्ति करना उचित एवं नैतिक है। भारतीय परम्परा में जैनधर्म विशुद्ध रूप से वैराग्यवादी परम्परा का समर्थक रहा है और इसी दृष्टि से उसने किसी सीमा तक देह दण्डन और आत्म-पीड़न के तथ्यों की अपनी साधना पद्धति का अंग भी माना । जैसा कि हमने पूर्व में संकेत किया |मण परम्परा के भगवान् बुद्ध प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने इन दोनों के मध्य एक संतुलन बनाते हुए मध्यम मार्ग का उपदेश देता है। बुद्ध कठोर मार्ग (देह दण्डन) और शिथिल मार्ग (भागवाद) दोनों को ही अस्वीकार करते हैं। बुद्ध के अनुसार यथार्थ नैतिक जीवन का मार्ग मध्यम मार्ग है। उदान में भी बुद्ध अपने इसी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं -- "ब्रह्मचर्य (संन्यास) के साथ व्रतों का पालन करना ही सार है -- यह एक अन्त है। काम-भागों के सेवन में कोई दोष नहीं यह दूसरा अन्त है। इन दोनों प्रकार के अन्तों के सेवन से संस्कारों की वृद्धि होती है और मिथ्या धारणा बढ़ती है।" इस प्रकार बुद्ध अपने मध्यममार्गीय दृष्टिकोण के आधार पर वैराग्यवाद और भोगवाद में यथार्थ समन्वय स्थापित करते हैं। भगवान बुद्ध ने जिस मध्यम मार्ग के विकास का उपदेश दिया था उसी का विकास महायान परम्परा में हुआ यद्यपि यह सत्य है कि मध्यम मार्ग का उपदेश देते हुए भी बुद्ध ने भोग की अपेक्षा वैराग्य पर कुछ अधिक बल दिया था जबकि महायान साधाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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