Book Title: Sramana 1993 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ 40 शीलदूतम् तवृत्तेन प्रमुदितमनाः सादरं साधुराजः। प्रादादस्यै भवभयहरं स्वं नमस्कारमन्त्रं प्रत्युक्तं हि प्रणयिषु सतामीप्सितार्थक्रियैव ।।१२०।। १२०. जब चरणों पर विनत कोशा ने भक्तिपूर्वक इस प्रकार कहा तब उसके व्यवहार से प्रसन्न उस साधुराज (स्थूलभद्र) ने उसे आदर-सहित सांसारिक भय दूर कर देने वाला अपना नमस्कार मन्त्र दे दिया, क्योकि प्रेमियों को वांछित वस्तु प्राप्त करा देना ही सज्जनों का प्रत्युत्तर है। तामूघेऽसौ मनसि सततं मन्त्रमेनं स्मर त्वं नित्यं भक्त्या त्रिभुवनगुरोर्जन्म सार्थं सृज स्वम्। शीलेनाऽलं विमलममले ! जैनधर्म भजेथाः प्रातः कुन्दप्रसवशिथिलं जीवितं धारयेथाः ।।१२१ ।। .१२१. हे कोशे ! तुम अपने मन में निरन्तर इस नमस्कार मन्त्र का स्मरण करो और त्रिलोक के गुरू (तीर्थकर) की भक्ति से अपना जन्म सफल बनाओ। हे निर्मलशील से युक्त सुन्दरी! जैन धर्म का पालन करो और प्रातः-काल के कुन्द-पुष्प के समान दुर्बल जीवन को धारण करो। धन्यमन्या मुनिवचनतोऽगीचकाराSखिलं तत् प्रीतिं भेजे मनसि परमां साSSप्तसम्यक्त्वलाभा। दुष्टे देवं गुरुनिगदिता यान्ति धर्मोपदेशा इष्टे वस्तुन्युपधितरसाः प्रेमराशीभवन्ति ।।१२२ ।। १२२. उस कोशा ने सम्यक्त्व प्राप्त कर अपने को धन्य समझते हुये, मुनि-वचन से सम्पूर्ण धर्म को स्वीकार कर लिया और मन में श्रेष्ठ प्रेम की अनुभूति की, क्योंकि गुरु के द्वारा कथित धर्मोपदेश दुर्जनों में देर और सज्जनों में आनन्दवर्धक प्रेम की राशि बन जाते हैं। भद्रे ! भद्रं भवतु सततं ते जिनेन्द्रप्रसादाद नन्तुं पादानथ निजगुरोरेष यास्यामि शस्यान्। ध्यायन्त्यै श्रीजिनपरिवृद्धं शीलरवेन शश्वद् मा भूदेवं क्षणमपि ध ते विद्युता विप्रयोगः ।।१३।। १२३. हे भद्रे ! तीर्थ-कर की कृपा से तुम्हारा सदा कल्याण हो । अब मैं अपने गुरु के श्रेष्ठ चरणों का वन्दन करने के लिये जाऊँगा। तुम जिनेन्द्र का ध्यान करो एक क्षण भी इस प्रकाशमान शील-रुपी रत्न से तुम्हारा वियोग न हो। नीत्वा मासानय स धतुरस्तत्र सध्छीलशाली गत्या सूरीन् समयधतुरो भूरिभक्त्या ववन्दे । तस्थौ गेहे मनसि दधती सा सुखं जैनधर्म www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66