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मेघ-यु
- युक्त दिन में अधखिली स्थल कमलिनी के समान भू-पृष्ठ पर लुंठित पड़ी रहती है।
आलोक्याsस्यास्तव विरहजं श्रेष्टितं यन्न भिन्नं तज्जानीमो वयमिति निजं वज्रसारं हृदेतत् । arvi तत्सदयहृदयात्रोचितं ते विधातुं प्रायः सर्वो भवति करुणावृत्तिराद्रान्तरात्मा । । ६६ ।।
६६. आप के विरह से उत्पन्न इस की चेष्टा को देखकर जो विदीर्ण नहीं हो गया उस अपने हृदय को मैं वज्र के समान कठोर मानती हूँ । अतः हे दयालु हृदय ! आप को इस पर दया करना उचित है क्योंकि प्रत्येक कोमल हृदय वाला मनुष्य दयालु होता है ।
अस्मद्वाक्यं चदि न हि भवान् मानयिष्यत्यदोऽपि प्राणत्यागं तदियमचिरात् सा विधास्यत्यवश्यम् । भूयो भूयः किमिह बहुना जलितेनाऽत्र भावि प्रत्यक्षं ते निखिलमचिराद् भ्रातरुक्तं मया यत् । ।१०० ।।
१००. यदि आप मेरे इस वाक्य को भी नहीं मानेंगे तो यह शीघ्र अवश्य प्राण त्याग देगी । पुनः पुनः कहने से क्या लाभ है? हे बन्धु ! मैंने जो कहा है वह शीघ्र आप को प्रत्यक्ष ज्ञात हो जायेगा ।
वार्त्ताव्यग्रां तुदति न तथा त्वद्वियोगोऽहूनीमां यद्वात्रौ कृतबहुशुचं चन्द्ररोचिश्चितायाम् । पश्यत्वेनां स्वयमपि भवानद्य भूमीशयानां तामुन्निद्रामवनिशयनासन्नवातायनस्थः । । १०१ । ।
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१०१. बहुत चिंतित रहने वाली कोशा को चाँदनी से भरी रात्रि में आप का वियोग जितना पीडित करता है। उतना दिन में नहीं, क्योंकि उस समय यह बात-चीन में फंसी रहती है। 1 अतः आज आप स्वयं ही भूमि पर बिछी शय्या के ऊपर जो खिड़की है उस में स्थित होकर भूमि पर लेटी और जगती कोशा को देख लें ।
विज्ञप्ति मे सफलय कुरु स्वं मनः सुप्रसन्नं सख्या साकं मम भज पुनर्देव ! भोगान् विचित्रान् । वामाक्ष्यस्यास्त्वयि सति मुहुः स्पन्दमेत्य प्रसन्ने मीनक्षोभाच्चलकुवलयश्रीतुलागेष्यतीव । । १०२ । ।
१०२. हे देव ! मेरी बिनती सफल करें, अपना मन प्रसन्न करें और मेरी सखी के साथ विचित्र भोग भोगें । आप के प्रसन्न हो जाने पर इस की बायीं आँख बार-बार फड़क कर मछलियों के चलने से कम्पित नील कमल के समान शोभा प्राप्त कर लेगी।
जेष्यत्याssस्यं प्रमुदितमलं मेघमुक्तस्य शस्यां शोभामिन्दोर्विकसितरुचेश्चारुरोचिश्चितं स्राक
प्राप्ते प्रीतिं भवति सुभगाSSनन्दितायाः किलाऽस्था
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