Book Title: Sramana 1993 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 25
________________ विश्वनाथ पाठक कर शेष तीनों पादों की पूर्तियां उसी छन्द में की गईं। ऐसे सभी काव्य मन्दाक्रान्ता छन्द में हैं, क्योंकि मेघदूत की पादपूर्ति उसी छन्द में संभव है। दूतकल्पना और सन्देश-प्रेपण मेघदूत के समान इन में भी है। पादपूर्ति काव्यों के प्रणेता अग्धिकतर जैन कवि हैं। उन की रचनाओं में वैराग्य और निर्वेद को महत्त्व दिया गया है। विमलकीर्ति का चन्द्रदूत, उपाध्याय मेघविजय का मेघदूत समस्यालेख, अज्ञात कर्तृक चेतोदूत, अवधूतराम योगी का सिद्धदूत और नित्यानन्द शास्त्री का हनुमदूत इसी कोटि की कृतियां हैं। इन में अन्तिम दो जनेतर कवियों की रचनायें हैं। केवल पादपूर्त्यात्मक काव्य मेघदूत की पादपूर्ति के रूप में रचित जिन काव्यों में दौत्य या सन्देश-प्रेषण का सर्वथा अभाव है वे केवल पादपूर्त्यात्मक काव्य हैं। पावाभ्युदय, नेमिदूत और शीलदूत ऐसे ही काव्य है। मेघदत की मन्दाक्रान्ता-शैली से प्रभावित इन काव्यों में दूतकाळ्य का कोई भी लक्षण दृष्टिगत नहीं होता है। परन्तु विद्वानों की परम्परा इन्हें भी दूतकाव्य या सन्देशकाव्य मानती रही है। पार्वाभ्युदय तो नाम से भी दूतकाव्य नहीं प्रतीत होता। नेमिदूत और शीलदूत के नामों में दूत शब्द अवश्य जुड़ा है, परन्तु केवल नाम में दूत शब्द की उपस्थिति मात्र से कोई दूतकाव्य नहीं हो जाता है। उसके लिये दूत के द्वारा सन्देश-प्रेषण अनिवार्य है। वस्तुतः इन काव्यों का नामकरण दौत्य के आधार पर हुआ ही नहीं है। उक्त काव्यों की रचना मेघदूत की शैली में हुई है और पादपूर्ति के कारण उनके कलेवर का चतुर्थांश मेघदूत की ही पंक्तियों से निर्मित है। अत: उदारचेता कवियों ने उस ऋण को इंगित करने के लिये काव्यों के नामों में दूत शब्द जोड़ दिये है। केवल पादपात्मक काव्यों में जैनाचार्य जिनसेन (आठवीं शती) का पाश्र्वाभ्युदय सर्वाधिक प्राचीन है। पूर्वोक्त पादपूर्त्यात्मक दूतकाव्यों का भी मार्गदर्शक यही काव्य है। इसमें मेघदूत के समस्त श्लोकों के समस्त पादों की क्रमानुसार प्रौढ़ पूर्तियां की गई हैं। इस प्रकार का यह अकेला काव्य है। 364 मन्दाक्रान्ता वृत्तों में ग्रथित पार्वाभ्युदय को कवि ने स्वयम् 'परिवेष्टित-मेघदूत' की संज्ञा दी है। पूर्वजन्म का शत्रु कमठ नामक असुर नानासांसारिक भोगों के प्रलोभनों से तीर्थंकर पार्श्वनाथ की तपश्चर्या में उपसर्ग उपस्थित करता है किन्तु वे अपने अंगीकत व्रत से लेश मात्र भी विचलित नहीं होते। यही इस काव्य की संक्षिप्त कथा वस्तु है। श्लोकों में मेघदूत के श्लोक-पादों को निम्नलिखित नौ स्थानों पर प्रयुक्त किया गया है -- १. केवल प्रथम पाद में २. केवल द्वितीय पाद में ३. केवल तृतीय पाद में ४. केवल चतुर्थ पाद में ५. प्रथम और तृतीय दोनों पादों में ६. द्वितीय और तृतीय दोनों पादों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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