Book Title: Siri Santinaha Chariyam
Author(s): Devchandasuri, Dharmadhurandharsuri
Publisher: B L Institute of Indology

View full book text
Previous | Next

Page 941
________________ सिरिसंतिजिणिदस्स णिव्वाणं सिरिसंति विलवहिं इंद निरंतर दुहिया, विलवहिं देवनिवह परिखुहिया । नाहचरिए विलवहिं देवि असेस दुहत्तिय, संतिजिणिदह गुण सुमरतिय ॥९७॥७४०७॥ विलवहिं खेयर खेयरि दुक्खिय सोयमहादवजालालुंखिय । विलवहिं मणुय सोयडज्झता, विलवहिं नारिनिवह मुझंता ॥९८॥७४०८॥ * एवं विलवइ सव्वो दुहिओ लोगो जिणिंदसिवगमणे । जेण जणे सुपसिद्धं नियकजं वल्लहं होइ ॥९९॥७४०९॥ नियकजं सीयंत दटुं रोवइ जणो इमो सव्यो । भयवं सतिजिणिंदो पत्तो पुण मोक्खसोक्खम्मि ॥१००॥७४१०॥ एवं विलवतेहिं इंदेहि आणिऊण नीराई । खीरोदयाइरयणागराण तो मजिओ भयवं ॥१०१॥७४११॥ नंदणवणाओ आणिय हरियंदणसरसबहलपकेण । घाण-मणमणहरेणं विलेवियं संतिजिणदेहं ॥१०२॥७४१२॥ कप्पूरभाइएहिं पहाणवासेहिं वासिय तह य । अच्छाइयं च तह देवदूसवत्थेण सण्हेणं ॥१०३॥७४१३॥ मयणाहि-अगरु-सिल्हय-मच्छयओगालमाइधूवेहिं । धूयंति सब्बओ चिय सिरिसतिजिणस्स तं देहं ॥१०४॥७४१४॥ मंदार-पारियाययसंताणयकुसुमपवरमालाहिं । उरुमालियं समंता कलेवर संतिणाहस्स ॥१०५॥७४१५॥ रयणविणिम्मियवरदेवछंदए छवियं तओ चियग । गोसीसदारुएहिं रयति अचंतसरसेहिं ॥१०६॥७४१६॥ १. °अगुरु० जे०।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016