Book Title: Siri Santinaha Chariyam
Author(s): Devchandasuri, Dharmadhurandharsuri
Publisher: B L Institute of Indology
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दाने १६:/* परिशिष्टम्
सिरिसंति-* भत्तिभरणिब्भरंगो जो वरपत्तेसु वियरए दाणं । सो सासयसुहकलियं लहइ णरो झत्ति अपवागं ॥८२।। नाहचनिभावण सुहमणकारय, भवसायरतरण, दुद्दमकरणतुरंगहं भावण कयदमण ।
*सुक्कझाणउप्पायग, केवलनाणकर, कामधेणु वर भावण एक्क जि होइ पर ॥१०॥ अभावणं भावयंतस्स सुहाणुद्वाणकारिणो । उप्पज्जए वरं नाणं लोयाऽलोयप्पयासयं ॥१०७|| * भावणाए पयट्टाणं उम्मग्गं जाइ णो मणं । धम्मट्ठाणेसु सव्वेसुं सुहेसुं संपयट्टए ॥१०३।। *भावणाए सुहाए उ भावियाए णिरंतरं । सुक्कज्झाणं समारोहे णरो कम्मक्खयंकरं ॥१०॥
भुवणं पि भूसियमिणं सप्पुरिसेहिं न एत्थ संदेहो । तेहि चिय सुपवित्तं विहियं, किं वा वियप्पेण ? ॥१५५८।। *भो ! भो ! एस रउद्दो अणोरपारो महाभवसमुद्दो । जन्मि विसयाऽऽमिसेणं बझंति जिया अणिमिस ब्व ।।७५५।। *भो भो असाररूवे संसारे एत्थ दुक्खपउरम्मि । मा किज्जउ पडिबंधो कुणह सया उज्जमं धम्मे ॥३८८४।। ॐ भोगा बहुवेरकरा, अलाहि भोगेहिं पावरूवेहिं । जाण कएणं जीवा हियाहियं नेव बुझंति ॥६३६।। *भोगोवभोगकलिओ अच्छरसाणिवहसंकुलो रम्मो । जहचिंतियदिन्नफलो दाणाओ लब्भए सग्गो ॥८१॥ * मंत-तंतेहिं णो सक्का वारेउं ओसहेहिं वा । ण धणेहिं, ण देवेहि, ण वेज्जेहि, बलेण वा ॥२२३७।। * मच्चू णिरुवक्कमो एंतो इंदेहि पि ण वारिओ । सो को वि णत्थि संसारे मच्चुणा जो ण पीडिओ ॥२२३८।। .मज्जेणं विसएहि य निद्दा-विगहाहि मोहिया जीवा । जे केवि हुँति एत्थं लहंति ते बहुविहअणत्थं ॥४८५९॥
भावनायाम् भावनानाम् भावनायाम् भावनायाम्
सुपुरुषे संसारस्वरूपे
भोगविपाके
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मरणे
मरणे प्रमादत्यागे
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