Book Title: Siri Santinaha Chariyam
Author(s): Devchandasuri, Dharmadhurandharsuri
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 999
________________ ५७९ परिशिष्टम् २३७ सिरिसंति- * विसयपमायपमत्ता जीवा हिंडंति भवकडिल्लम्मि । जत्थ सहति दुहाई नाणारूवाई घोराई ॥४८९६।। विषयत्यागे नाहचरिए *विसया सियाल-सुणगाइयाण सव्वाण होति सामन्ना । तह जिंदणिज्जरूवा उब्वियणिज्जा बुहगणाणं ।।७५७॥ विषयस्वरूपे विसयाण साहणाओ नारीओ होंति जीवलोगम्मि । एवंविहाओ ताओ ता धी धी थीसहावस्स ॥५०६२।। नारीस्वरूपे * विहवु बंधणु मरणु दालिङ, धणु परियणु कित्ति जसु, * सुहु वि दुक्खु जं जेण जइयह, पावेवउं अवसु फुड होइ तस्स तं तेण तइयहं । * जसु कारणि जहिं वयसि जहिं मंडलि जहिं देसी, विहिभंडारिणि घडिउ पुणु आणइ तं तसु रेसि ॥२२१८।। दैवे 3.बीयउं अंगु वियाणह सीलह, मद्दवु नामें निरु परिसीलह । जहिं पणामु गोरव्वहं किज्जइ, माणह निग्गहु जेत्थु विहिज्जइ ॥५५६५॥ यतिधर्मे * वीसंभजणियगहिए परूढसब्भावपेम्मपसरम्मि । उवयारो कीरइ माणुसम्मि कत्तोच्चयं एयं ॥५०५४॥ कृत्रिमस्नेहे * संसारणिव्वाणसमुब्भवाणि सोक्खाणि सव्वाणि वि सुंदराणि । जीवस्स आणंदकराणि जाणि ताणं पि हेऊ सुतवोऽणुचिण्णो ॥९९॥ तपसि * संसारम्मि असारे परिब्भमंताण एत्थ जीवाण । सासयसुहेक्कमूलो जिणधम्मो दुल्लहो वच्छे ! ॥६३२॥ धर्मे *संसारसायरो घोरो अपारो वि सरीरिणं । भावणं भावयंताणं गोपयं पिव भासए ॥१०॥ भावनायाम् * संसारस्स उ मूलं कोहाईया उ सोलस कसाया । जाण वसगो मणुस्सो भमइ महाभवकडिल्लम्मि ॥१७१९।। कषाये *सक्किजंति ण घेत्तुं उवयारेहिं वि अणन्नसरिसेहिं । रामाओ नाइणी इव, ता धी धी थीसहावस्स ॥५०५८॥ नारीस्वरूपे *सच्चेण पावेइ पहाणकिर्ति, सच्चेण पावेइ न चेव छित्तिं । सच्चेण वीसासमुवेइ लोए, सच्चेण पावेइ सुहाण जोए ॥३३१७॥ सत्ये। ******************* ६६ ९४९

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