Book Title: Siri Santinaha Chariyam
Author(s): Devchandasuri, Dharmadhurandharsuri
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 992
________________ सिरिसंतिनाहचरि शीले १७ शीले १७ तपसि १९ ३८६ ६८९ ३९३ ६८९ ६१६ जहचितियसं पज्जतसयलमणवंछियाण य सुराण एवं चिय पर दुलहं सीलं नीसेसजयपयडं ॥८७॥ जहा उ विद्दुमं सारं सागराओ भवे तहा भीमाओ भवओ यावि तहा सीलं वियाहियं ॥ ९२ ॥ जहा राणं इह कामकुंभो भवे सया कामियकज्जकारी तहा तवो होड़ मणोगयाणं सुहाण दाया खलु तप्पमाणो ॥ १०१ ॥ जा कुण सव्वतति कम्मराणं तहेव बंधूण । उचियम्मि संपयट्टइ घरस्स लच्छी, न सा घरिणी ॥३२४०॥ सुभार्यायाम् जा व कडी सुविसाला, मोहिज्जइ जीए एस किर जीवो। सा हड्ड-चम्म-मंसेहि णिम्मिया किं न चितेहि ? ॥५७४९ ॥ नारीकट्याम् नारीजंघायाम् नारीस्वरूपे जा सा अहिंसा पढमा वयाणं, सा भायणं होइ सया सुहाणं सा वज्जतुल्ला दुहपव्वयाणं, सा कारणं सासयसंपयाणं ॥ ३३१५॥ अहिंसायाम् जाओ वि य जंघाओ, कयलीथंभोवमाओ कलियाओ । चिंतिज्जंतीओ विवेइणा उ, ताओ वि असुहाओ ॥ ५७५१ ॥ जाण करणं अप्पा जल-जलणाईसु घोररूवेसु । पक्खिप्पर अवियप्पं ता धी धी थीसहावस्स ||५०६३॥ जाव न रसमसकसमसहि चूरिउ पाउ तवेण ताव कि लब्भइ दडुजिय जं चितिया मणेण || ३७३५ || जीवा पमायवसया पडंति संसारसायरे घोरे । तम्हा तयं विवज्जह, मा मुज्झह निययकज्जम्मि ||४८५८।। जे उत्तमकुलजाया सुमरंता ते कुलक्कमं धीरा । मत्तगयंद व्व सया न य उम्मग्गं पवज्र्ज्जति ॥ २९३३॥ जे उत्तमजाईए संभूया होंति माणवा केइ । जच्चतुरय व्व निच्चं न य उम्मगं पवज्र्ज्जति ॥ २९३४ ॥ जे कणयकुम्मसरिसा पाया वरकामिणीण परिकलिया । ते अट्ठिपंजरमया जीव ! तुमं धरसु चित्तम्मि ॥५७५२ ॥ जे कुंदकलियवरपंतिसच्छहा मन्निया इमे दसणा । ते हड्डखंडमालं, पच्चक्खं मुणसु रे जीव || ५७४५ ॥ तपसि ४५० ५७६ प्रमादत्यागे उत्तमपुरुषे ३४५ उत्तमपुरुषे ३४५ नापादे ६८९ नारीदते ६८९ परिशिष्टम् ९४२

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