Book Title: Siri Santinaha Chariyam
Author(s): Devchandasuri, Dharmadhurandharsuri
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 948
________________ प्रशस्तिः सिरिसंतिनाहचरिए खभाइत्थपुरम्म जेण य विहिऊण अणसणं विहिणा । संलेहणाइपुव्वं लोयाणं कयचमक्कारो ॥१३॥ तस्स य सीसेण इमं अच्चंत मंदबुद्धिविहवेण । सिरि देवचंदनामेण सूरिणा जिणसुभत्तेण ॥१४॥ सिरिसंतिणाहचरियं रइयं सिवसंगचारुसोक्खत्थं । अन्नाण वि जीवाणं देउ सया संति-वरसोक्खं ॥१५॥ सिरिखंभतित्थनयरे जिणपूयण-थुणण-बंदणुजुत्तो । सामाइयाइनिरओ लेहियबहुपोत्थयसमूहो ॥१६॥ सेट्ठी सद्धम्मजुओ नामेणं आसि बीहओ पवरो । सयलगुणाण निहाणं धुरंधरो धम्मपुरिसाणं ॥१७॥ तस्स य तग्गुणजुत्तो पुत्तो सिरिवच्छनामओ सेट्ठी । तव्वसहीए डिएहिं रइयं सिरिदेवचंदेहि ॥१८॥ आसद्देवो य गणी थिरचंदगणी य दोन्नि वि सुसीसा । मज्झ सहाया जाया लिहमाणा पट्टियाईसु ॥१९॥ एक्कारसएहिं सएहिं विक्कमसंवच्छराओ सडेहिं । रइयं खंभाइत्थे रजे जयसिंहरायस्स ॥२०॥ जो पढइ सुणइ वायइ वक्खाणइ पवरभत्तिसंजुत्तो । सो पावइ इह संति, परंपराए हवइ मुत्तो ॥२१॥ जावचंदो दिणिंदो सयलजलहरा जाव भूवीढमेयं, जावद्देवाण सेलो वरसुरसरिया जाव सग्गा-ऽपवग्गा। ता एवं मच्चलोए सिवसुहजणय सव्वजीवाण सम्म, निच नंदेउ एत्थं सिरिवरचरिय संतिणाहस्स रम्मं ॥२२॥ एक्केकऽक्खरगणणाए गथमाणं विणिच्छियमिमस्स । बारस उ सहस्साई सएण एक्केण अहियाई ॥२३॥ अंकतोऽपि ग्रन्थसहस्रं १२१०० ॥ मंगलं भूयात् श्रीसंघभट्टारकस्य ॥ १. यसिंघराय° पा०॥ ८९८

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