Book Title: Siddhhemchandrashabdanushasanam
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 112
________________ सप्तमाध्याये प्रथमः पादः शत- सहस्रे शति-शद् दशान्ताया ड: (१५५) सङ्ख्यापूरणे डट् ( १५६) विंशत्यादेर्वा तमट् ( १५७) शतादि - मासाऽर्द्धमास-संवत्सरात् (१५८) षष्ट्यादेरसङ्ख्यादेः (१५९) नो मट् (१६०) पितू तिथट् बहु-गणपूग- संघात् (१६१) अतोरिथट् (१६२) षट् - कति-कतिपयात् थट् (१६३) चतुरः (१६४) येयौ च लुक् च (१६५) द्वेस्तीय: (१६६) त्रेस्तृ च (१६७) पूर्वमनेन सादेश्चेन् (१६८) इष्टादे: (१६९ ) श्राद्धमद्यभुक्तमिकेनौ (१७०) अनुपद्यन्वेष्टा (१७१) दाण्डाजिनिका ssयः शूलिक- पार्श्वकम् (१७२) क्षेत्रेऽन्यस्मिन् नाश्य इयः (१७३) छन्दोऽधीते श्रोत्रश्च वा (१७४) इन्द्रियम (१७५) तेन वित्ते चञ्चु चणौ (१७६) पूरणाद् ग्रन्थस्यग्राहके को लुक् चाऽस्य ८७ (१७७) ग्रहणाद् वा (१७८) सस्याद् गुणात् परिजाते ( १७९) धन - हिरण्ये कामे (१८०) स्वाङ्गेषु सक्ते (१८१) उदरे विकणाद्यूने (१८२) अंश हारिणि (१८३) तन्त्रादचिरोद्धृते (१८४) ब्राह्मणान्नाम्नि (१८५) उष्णात् (१८६) शीताच्च कारिणि (१८७) अधेरारूढे (१८८) अनो: कमितरि (१८९) अभेरीश्व वा (१९०) सोऽस्य मुख्यः ( १९१) शृङ्खलकः करभे (१९२) उदुत्सोरुन्मनसि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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