Book Title: Siddhhemchandrashabdanushasanam
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 192
________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । १६७ स्त्री - बहुष्वायनञ् |६|१|४८|| स्थण्डिलात्-ती । ६।२।१३९|| स्थलादेर्मधुक ण् | ६ |४| ९१ || स्थाग्लाम्लापचि-सुः |५|२|३१|| सौयामायन - वा | ६ |१|१०६ ॥ सौवीरेषु कूलात् |६|३|४७|| स्कन्द-स्यन्दः |४|३|३०|| स्कनः | २|३|५५|| स्कृच्छृतो-याम् ||४|३|८|| स्क्रसृवृभृ-याः | ४|४|८१ || स्तम्बात् घ्नश्च |५|३|३९|| स्तम्भू-स्तुम्भू-च ।३|४|७८ || स्ताद्यशितो-रिट् |४|४|३२|| स्तुस्वञ्जश्वा वा | २|३|४९|| स्तेनान्नलुक् च | ७|१|६४|| स्तोकाल्प-णे | २|२|७९ || स्तोमे डट् |६|१२६|| स्त्यादिर्विभक्तिः | १|१|१९|| स्त्रियाः | २|१|५४|| स्त्रियाः पुंसो-च्च |७|३|९६ || स्त्रिया ङितां - दाम् | १|४|२८|| स्त्रियां क्तिः |५|३|९१|| स्त्रियां नाम्नि | ७|३|१५२।। स्त्रियां नृतो- र्डी | २|४|१|| स्त्रियां लुप् |६|१|४६|| स्त्रियाम् | १|४|९३|| स्त्रियाम् ||३|२/६९ || स्त्रियामूधसो न् | ७ | ३ | १६९ || स्त्रीदूतः | १|४|२९|| स्त्री पुंवच | ३|१|१२५ ।। Jain Education International स्थादिभ्यः कः | ५ | ३|८२|| स्थानान्तगो-लात् |६|३|११०॥ स्थानीवाऽवर्णविधौ | ७|४|१०९|| स्थापास्नात्रः कः | ५|१|१४२ || स्थामाजिना - प् |६|३|९३|| स्थानिसेध - प |२|३|४०|| स्थूल- दूर- नः | ७|४|४२|| स्थेशभास-र: |५|२|८१|| स्थो वा |५|३|१६|| स्नाताद्वेदसमाप्तौ |७|३|२२|| स्नानस्य नाम्नि | २|३|२२|| स्नोः || ४|४|५२|| स्पर्द्धे |७|४|११९|| स्पृश- मृश- कृष-वा | ३|४|५४|| स्पृशादि-सृपो वा | ४|४|११२|| स्पृशोऽनुदकात् | ५ | १|१४९ ॥ स्पृहेर्व्याप्यं वा | २|२|२६|| स्फाय् स्फावू |४|२|२२|| स्फाय: स्फी वा | ४|१|९४ || स्फुर - स्फुलोर्घञ | ४||४|| स्मिङः प्रयोक्तुः० |३|३|९१|| स्मृत्यर्थ-दयेशः | २|२|११॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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