Book Title: Siddhhemchandrashabdanushasanam
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Hemchandracharya Jain Gyanmandir Patan

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Page 194
________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकारायनुक्रमः । १६९ हस्तार्थाद् ग्रह- तः | ५|४|६६|| हस्तिपुरुषाद्वाण् |७|१|१४१ ॥ हस्तिबाहुकपा- तौ | ५ | १|८६ ।। स्सटि समः | १|३|१२|| हः काल-व्रीह्योः | ५ | १|६८ || हत्या भूयं भावे |५|१|३६|| हनः |२|३|८२|| हनः सिच् ।४|३|३८|| हनश्च समूलात् |५|४|६३॥ नृत: स्यस्य |४|४|४९|| नो घ | २|३|९४ || हो नी | ४ | ३ |९९|| हनो णिन् | ५ | १|१६०|| हनोऽन्तर्घना - देशे | ५ | ३|३४|| नो वध - | ४|४|२१|| नो वा वधू च | ५ | ३ |४६|| नो ह्नो घ्न् | २|१|११२॥ हरत्युत्सङ्गादेः |६|१|५५ || हलक्रोडाssस्ये वः | ५|२|८९|| हलसीरादिकण् ||६| ३ | १६१ || हलसीरादिकण् | ७ | ११६ ॥ हलस्य कर्षे |७|१|२६| हवः शिति ।४।१।१२|| हविरन्न-वा | ७|१|२९|| हविष्यष्टनः कपाले | ३|२|७३|| हशश्वद्युगान्तः - च |५|२|१३|| हशिटो ना - सकू | ३ | ४|५५|| हस्तदन्त - तौ |७|२|६८|| हस्तप्राप्ये रस्तेये || ३ |७८|| हाकः |४ |२| १००॥ हाको हिः क्त्व | ४|४|१४|| हान्तस्थात् ञीड्भ्यां वा | २|१|८१|| हायनान्तात् |७|१|६८॥ हितनाम्नो वा | ७|४| ६०|| हितसुखाभ्याम् |२|२|६५।। हितादिभिः | ३|१|७१ ।। हिमहतिकाषिये पद् | ३|२|९६|| हिमालुः सहे | ७|१|९|| हिंसार्थादेकाप्यात् |५|४|७४ || हीनात् स्वाङ्गादः | ७|२|४५॥ हुधुटो हेर्धिः || ४|२|८३ || हक्रोर्नवा |२|२|८|| हो गतताच्छील्ये । ३।३।३८|| as | ५ | ११९५ || हृदयस्य-ण्ये | ३|२|९४|| हृद्भगसिन्धोः |७|४|२५|| हृद्य-पद्य-तुल्य-र्म्यम् |७|१|११|| हृषेः केशलोम-ते |४|४|७६॥ हेः प्रश्नाख्याने |७|४|९७|| हेतुकर्तृकरणे णे |२| २|४४|| तच्छीला तू | ५ | १|१०३॥ हेतुसहार्थेऽनुना | २|२|३८|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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