Book Title: Shrutsagar Ank 2013 07 030
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नलोडापुरमंडन पद्मावती स्तोत्र संजयकुमार झा जिनशासनरक्षिका, पार्श्वजिनाधिष्ठायिका, वामेयपादपद्मसेवकभैरवप्राणवल्लभा, पार्श्वजिनभक्तभवभीतिभजिका, भक्तमनोमोदप्रदायिका व स्नेहसुधावृष्टिकारिका लोकजननी माता भगवती पद्मावती को भला कौन नहीं जानता! वात्सल्यपूर्णा माता पद्मावती का नाम लेते ही भक्तों का मन भक्तिभाव से ओतप्रोत होकर, भक्तिसरिता बनकर हिलोड़े मारने लगता है. जन-जन की आराध्या माँ पद्मावती को गच्छसमुदाय, जैन-जैनेतर आदि सभी सीमाओं से मुक्त होकर निष्ठापूर्वक इनकी भक्तिगंगा में पावन होने से कोई भक्त चूकता नहीं. चाहे पर्युषणपर्व हो, पंचमी, अष्टमी या पूर्णिमा तिथि हो, कोई महोत्सव या प्रतिष्ठा हो माता के मंदिर में प्रवेश करते ही भक्त अंतस्तल से भावविभोर हो 'पद्मावती मात की जय' की जयकारा बोले विना अपने आपको रोक पाता नहीं. इसी से समझा जा सकता है कि भक्ति की परम्परा में माँ की महिमा भक्तहृदय के क्षितिज पर कितनी व्याप्त है, जैसे वैदिक परम्परा में शिवदर्शन से पूर्व नंदीदर्शन तथा श्रीरामदर्शन के पहले रामसेवक (हनुमान) के दर्शन हेतु स्थापित प्रतिमाएँ देखी जाती है, उसी प्रकार जैन परम्परा में भगवान पार्श्वनाथ के मंदिर में इनके अधिष्ठायक देव-देवी भैरवपद्मावती की प्रतिष्ठित प्रतिमा देखने को मिलती है. अधिष्ठायक ये देवदेवी भक्तों के द्वारा की गयी जिनभक्ति की सफलता में सहायक सिद्ध होते हैं. यूँ कहें तो अतिशयोक्ति नहीं कि भक्ति में सिक्त अपने समस्त भक्तों के विघ्नों का निवारणकर माँ कल्याणप्रदान करती हैं. इनकी महिमा का गुणगान चाहे कितने ही किये जाएँ, सिंधु में बिंदु के सहस्रतम अंशसम भी कदाचित् होगी, किन्तु सुज्ञ भाविक भक्तों से आग्रह है कि विद्वान कवि खेमकुशल(क्षेमकुशल) रचित माँ पद्मावती की भाववाही स्तवना को बिंदु में सिंधु मानकर, हृदय में उतारकर अपनी भक्तिगंगा को सतत प्रवाहित रखें. कृति परिथय : प्रस्तुत कृति पद्मावती नलोडापुरमंडन-स्तोत्र खेमकुशल द्वारा रचित एक सुंदर भाववाही रचना है, भक्तिक्षेत्र में स्तोत्रसाहित्य. का अभूतपूर्व योगदान है. भक्ति व स्तुति में गहरा संबंध है. प्रभु के प्रति भक्त की भावनात्मक अवस्था ही तो भक्ति है. इसे चाहे जिस रूप में प्रकट करें. धार्मिक क्रियाएँ, भजन-कीर्तन, जपतप, उपवास-नियम आदि ये सभी भक्ति के ही अंग कहे जायेंगे. जप-तप, उपवास, संयम-नियम, विधि-विधान आदि कार्यों का शास्त्रोक्त रीति से पालन करना होता है, जो सबके लिये सरल व सुगम नहीं है. जबकि प्रभु से की गयी For Private and Personal Use Only

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