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जुलाई - २०१३ वस्तुतः इन चार आर्यसत्यों को चिकित्साशास्त्र में भी अपनाया गया है, जिसे चतुर्दूह-रोग, रोगहेतु, आरोग्य तथा भैषज्य की संज्ञा दी गई है। इसी प्रकार दर्शनशास्त्र में- दुःख, संसारहेतु (दुःख का कारण), मोक्ष (दुःख का नाश) तथा मोक्षोपाय कहकर इन चार सत्यों को स्वीकारा गया है। व्यासभाष्य में कहा गया है
यथा चिकित्साशास्त्रं चतुर्वृह- रोगो रोगहेतु: आरोग्यं भैषज्यमिति। एवमिदमपिशास्त्रं चतु—हं- तद्यथा संसार संसारहेतुः मोक्षो मोक्षोपाय इति।।
इस प्रकार गौतम बुद्ध के चार आर्यसत्य जन-जन को प्रेरित करने के लिए उत्तम उपाय हैं। जिनके अनुसरण द्वारा संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति मिल सकती है।
संदर्भ ग्रंथ १. बुद्धचिरतम्- अश्वघोषकृत। २. दीर्घनिकायपालि- बौद्धभारती वाराणसी से प्रकाशित । ३. प्रमाणवार्तिक- आचार्य धर्मकीर्तिकृत। ४. बौद्धधर्म के मूल सिद्धान्त- धर्मरक्षित भिक्षु। ५. बौद्धधर्म के विकास का इतिहास- जी.सी. पाण्डेय। ६. बौद्धदर्शन- राहुल सांकृत्यायन । ७. बौद्धधर्म के २५०० वर्ष- संपा. पी.वी. बापट। ८. बौद्धदर्शन मीमांसा- आचार्य बलदेव उपाध्याय। ९. संस्कृति के चार अध्याय- कवि रामधारीसिंह दिनकर। १०. बौद्धदर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन- डॉ. भगतसिंह उपाध्याय । ११. आचार्यधर्मकीर्तिकृत-प्रमाणवार्तिक आचार्यविद्यानन्दकृतप्रमाणपरीक्षायोः
तुलनात्मकमध्ययनम्, (शोधप्रबन्ध)- डॉ. उत्तमसिंह।
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