Book Title: Shrutsagar Ank 2013 07 030
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ श्रुतसागर - ३० जाता है। यह तृष्णा मुख्यरूप से तीन प्रकार की है- (१) कामतृष्णा, (२) भवतृष्णा और (३) विभवतृष्णा। जीव इस तृष्णा के कारण नाना प्रकार के विषयों में अनुरक्त होते रहते हैं और उसी राग के कारण बन्ध होता है। अतः तृष्णा प्राणियों के समस्त उपद्रवों का मूल है। चोरी, डकैती, युद्ध तथा अन्याय आदि तृष्णा के कारण ही होते हैं। इसका उन्मूलन करना प्रत्येक प्राणी का कर्तव्य है। महाभारत में भी तृष्णा का क्षय दुःख को दूर करने का प्रमुख साधन माना गया है। ३. दुःख निरोध आर्यसत्य : यह तृतीय आर्यसत्य है। यहाँ निरोध का अर्थ है रोकना। अतः दुःख का अन्त संभव है। चूंकि प्रत्येक वस्तु किसी ना किसी कारण से उत्पन्न होती है। यदि उस कारण का नाश कर दिया जाये तो वस्तु भी विनष्ट हो जायेगी। अर्थात् कारण समाप्त होने पर कार्य का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा । अतः दु:ख के मूल कारण तृष्णा (अविद्या) का विनाश कर दिया जाय तो दुःख भी नष्ट हो जायेगा। इस दुःख निरोध को ही निर्वाण कहा गया है। यही जीवन का चरम लक्ष्य है। इसकी प्राप्ति जीवनकाल में भी संभव है। अतः निर्वाण का अर्थ जीवन का विनाश न होकर उसके दुःखों का विनाश है। इसकी प्राप्ति से पुनर्जन्म रुक जाता है तथा दुःखों का भी अन्त हो जाता है | गौतम बुद्ध ने इस अवस्था को वर्णनातीत कहा है। ४. दःख निरोधगामिनी मार्ग प्रतिपदा आर्यसत्य : यह दुःख निरोध तक पहुँचाने वाला मार्ग है। उपरोक्त कथनानुसार दुःख का मूल अविद्या है, और अविद्या के विनाश का उपाय अष्टांगिक मार्ग है। अष्टांगिक मार्ग को मध्यम मार्ग भी कहा गया है । इसके आठ अंग निम्नवत हैं- १. सम्यक दृष्टि, २. सम्यक संकल्प, ३. सम्यक् वाणी, ४. सम्यक् कर्म, ५. सम्यक् आजीविका, ६. सम्यक् व्यायाम, ७. सम्यक् स्मृति एवं ८. सम्यक् समाधि। इस अष्टांगिक मार्ग का आधार शील, समाधि और प्रज्ञा हैं। गौतम बुद्ध ने शील, समाधि एवं प्रज्ञा को दुःख निरोध का साधन बताया है। यहाँ शील का अर्थ सम्यक् आचरण, समाधि का अर्थ सम्यक् ध्यान तथा प्रज्ञा का अर्थ सम्यक् ज्ञान से है। अतः कहा गया है कि शील तथा समाधि से प्रज्ञा की प्राप्ति होती है जिससे भवतृष्णा का क्षय होता है । यही सांसारिक दुःखों से मुक्ति पाने का मूल साधन है शीलं समाधिप्रज्ञा च विमुक्ति च अनुत्तरा। अनुबुद्धा इमे धम्मा गौतमेन यसस्सिना।। (दीर्घनिकाय) For Private and Personal Use Only

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