Book Title: Shrutsagar Ank 2013 07 030
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३० २७ जिन-मूर्तियाँ, नवग्रह, गज, महाविद्याएँ एवं अन्य आकृतियाँ हैं। साहित्यिक और पुरातात्त्विक तथ्यों के आधार पर जैन प्रतिमा की निरन्तरता हड़प्पा काल से लेकर मध्यकाल और आधुनिक काल तक देखी जा सकती है। एक निश्चित अर्थ एवं उद्देश्य से युक्त संपूर्ण जैन कला पूर्व-परम्पराओं के निश्चित निर्वाह के साथ ही साथ धर्म एवं सामाजिक धारणाओं में होने वाले परिवर्तनों से भी सदैव प्रभावित रही है। जैन कला वस्तुतः धार्मिक एवं सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति रही है। कलाकार और समाज की कल्पना की साकारता यद्यपि विभिन्न कालों में प्रतिमाओं का माध्यम भिन्न (पाषाण, काष्ठ, धातु, मृण्यमूर्ति) रहा है। जैन धर्म की वैचारिक उदारता, दार्शनिक गम्भीरता, लोकमंगल की उत्कृष्ट भावना, विपुल साहित्य और उत्कृष्ट शिल्प की दृष्टि से विश्व के इतिहास में इसका अवदान महत्वपूर्ण है। संदर्भ ग्रंथ १. देवगढ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन - भागचन्द्र जैन २. जैन प्रतिमा विज्ञान - मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ३. हड़प्पा आर्ट,नई दिल्ली, २००७ - डी.पी. शर्मा ४. जैन साहित्य का बृहद इतिहास - बेचरदास जीवराज दोशी ५. जैन मूर्तियाँ - कामता प्रासाद ६. जैन इमेज ऑफ मौर्य पिरियड - के.पी.जायसवाल ७. भारतीय कला - वासुदेवशरण अग्रवाल સુવિચાર છે નિંદા પાળેલા કબૂતર જેવી છે. પાળેલાં કબૂતર પોતાના માલિકના ઘરે જ પાછા ફરે છે. જ નિર્ણય લેવાની શક્તિ અનુભવોમાંથી અને અનુભવ ખોટા નિર્ણય લેવામાંથી भणे छे. For Private and Personal Use Only

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