Book Title: Shravakachar Sangraha Part 2
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 12
________________ । ११ ) देवसे प्राप्त धनका विविध प्रकारसे दानमें उपयोग करनेका उपदेश वर्तमानकालिक मुनियों में पूर्वकालिक मुनियोंको स्थापनाकर पूजनेका उपदेश अशुभ भावसे आत्म-रक्षा करनेका उपदेश ज्ञान, तप और ज्ञानी तपस्वियोंके पूज्य होनेका कारण मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टियोंके पात्र-अपात्र-दानका फल पात्र-दानके फलसे भोगभूमिमें उत्पन्न हुए जीवोंकी अवस्थाका वर्णन मुनियोंको तप और श्रुतके उपयोगी दान देनेका उपदेश चतुर्विध दानके फलको प्राप्त करनेवालोंके दृष्टान्त मुनियोंको बनाने और उनके गुण बढ़ाते रहनेका उपदेश सद्-गुणोंके प्रकाश करनेवालेका प्रयास सदा श्रेयस्कर है आर्यिकाओं और श्राविकाओंके सत्कारका उपदेश कार्यपात्रोंके उपकार करने और करुणादान करनेका उपदेश जबतक भोगोपभोगकी प्राप्ति सम्भव न हो, तबतक भी उनके त्याग करनेका उपदेश व्रत-पालनेके पश्चात् उसके उद्यापन करनेका विधान व्रतोंको ग्रहण करके संरक्षण करने तथा भंग होनेपर पुनः शीघ्र धारण करनेका उपदेश व्रतका स्वरूप, जीवोंकी रक्षाका विधान और संकल्पी हिंसाके त्यागका उपदेश हिसक, दुःखी और सुखी प्राणियोंके घात नहीं करनेका सयुक्तिक विधान सम्यग्दर्शनकी विशुद्धिके लिए तीर्थयात्रा करने आदिका विधान कीति-सम्पादन और प्रसारको आवश्यकता पाक्षिक श्रावकको नैष्ठिक और साधक बननेका उपदेश तृतीय अध्याय नैष्ठिक श्रावकका स्वरूप ग्यारह प्रतिमाओंके नाम और उनकी संज्ञाओंका निर्देश स्वीकृत व्रतोंमें दोष लगानेवाला व्यक्ति पाक्षिक है, नैष्ठिक नहीं दर्शनिक प्रतिमाका स्वरूप दार्शनिक श्रावकको मद्यादिके व्यापार करने-कराने और अनु मोदना करनेके त्यागका उपदेश मद्यादि सेवन करनेवालोंके संसर्ग-त्यागका उपदेश सन्धानक आदि सभी प्रकारके अभक्ष्योंके त्यागका विधान मद्य, मांस, मधु, उदुम्बर फल और रात्रिभोजनके अतिचार-वर्णन जल-गालन व्रतके अतिचार व्यसनोंसे पूर्वकालमें दुःख पानेवालोंके नामोंका उल्लेख व्यसनकी निरुक्ति करके उसके दुष्फलका निरूपण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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