Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 4
________________ दान दाता सूची CNX 004 श्री श्रावकाचार जी । जागरण गीत। जागो हे भगवान आत्मा, जागो हे भगवान ।। मोह नींद में क्यों सो रहे हो । अपनी सत्ता क्यों खो रहे हो ॥ तुम हो सिद्ध समान आत्मा, जागो हे भगवान ॥१॥ नर भव में यह मौका मिला है । सब शुभ योग सौभाग्य खिला है ॥ क्यों हो रहे हैरान आत्मा, जागो हे भगवान ॥२॥ इस शरीर से तुम हो न्यारे । चेतन अनन्त चतुष्टय धारे ॥ तोड़ो मोह अज्ञान आत्मा, जागो हे भगवान ॥३॥ पर के पीछे तुम मर रहे हो । पाप परिग्रह सब कर रहे हो । भुगतो नरक निदान आत्मा, जागो हे भगवान ॥४॥ तुम हो शुद्ध बुद्ध अविनाशी । चेतन अमल सहज सुखराशी ॥ कर लो भेद विज्ञान आत्मा, जागो हे भगवान ||५|| आयु तक का सब नाता है । मोह यह तुमको भरमाता है । देख लो सब जग छान आत्मा, जागो हे भगवान ॥६॥ कर्म प्रधान विश्व करि राखा । जो जस करहिं सो तस फल चाखा। करो धरम पुण्य दान आत्मा, जागो हे भगवान ॥७॥ तारण तरण हैं तुम्हे जगा रहे । मुक्ति मार्ग पर तुम्हें लगा रहे ॥ पाओ पद निर्वाण आत्मा, जागो हे भगवान ॥८॥ आचारमत: अनमोल रत्न देव स्वरूप देव जिनेश्वर ज्ञान मय, चौदह प्राण संजोत । चार चतुष्टय युक्त वह, मानत शिव सुख होत ॥ देवालय यह देह है,देव निजातम शुद्ध। परम पूज्य परमेष्ठि वह, कहें जिनेश्वर शद्ध। दर्शन ज्ञान संयुक्त यह, चरण वीर्य मय आप। निराकार है देव शुभ , देह दिवालय माप ॥ रत्नत्रय महिमा कह्यो तत्व श्रद्धान को, सम्यक दर्शन सार। तत्व निजातम स्वयं है, अर्थ तिअर्थ विचार ।। ज्ञान नेत्र हैं भव्य के, वस्तु स्वरूप दिखाय। जिनवाणी में भक्ति अति, भेदज्ञान बल पाय ।। थिर हो शुभ चारित्र में, शुद्ध तत्व पहिचान । ओंकार अनुभव करो,शाश्वत शिवसुख मान ।। सम्यक् दर्शन शुद्ध यह, सम्यक् ज्ञान चरित्र । कर श्रद्धा अज्ञान ज, सम्यक् वन्त पवित्र ।। सत्यधर्म द्रव्यार्थिक नय शुद्ध कर, चेतन लक्षण वन्त । कर्म मुक्त कर जीव को, वही धर्म शिव पंथ ।। धर्म आत्म गुण है सदा, रत्नत्रय मय जान। कर्म विवर्जित जीव को,करे ताहि पहिचान ।। धर्म वही उत्तम कह्यो, जो खंडे मिथ्यात । शुद्ध तत्व चेतन तनो, करै प्रकाश सुहात ।। समाजरल स्व.पू.श्री जयसागर जी महाराज कृत 'आचारमत' से साभार.

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