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दजी बाड़ : ढाल : ३ गा० ३-८
३ वाणी कोयल जेहवी रे.
हाथ पांव रा करें वखांण। . हंस गमणी कटी सींह समी रे,
नाभि ते कमल समांण रे॥भ०॥ ४-कूख जें जेहनी अति भली रे,
वले अंग उपंग . अनेक। त्यांने वारंवार न सरावणा रे,
आंणी मन में विवेक रे २ ॥०॥ ५–जथातथ कहितां थकां रे,...
दोष नहीं , लिगार।
पिण विनां काम कहिवा नहीं रे, - नारी रूप वर्ण सिणगार रे ॥ भ०॥
६-नारी रूप सरावतां रे,
बधैं छे विषे विकार । परिणाम चल विचल हुवे रे, .. हुवे वरत नों विगाड़ रे ॥०॥
प्रवाल के रंग की तरह हैं। उसकी वाणी कोयल की तरह मधुर है। उसके हाथ-पांव इस तरह के सुन्दर हैं। उसकी चाल हंस की तरह है। उसका कटि-प्रदेश सिंह की तरह है। उसकी नाभि कमल के समान है। उसकी कुक्षि अति सुन्दर है। ब्रह्मचारी मन में विवेक लाकर इस तरह नारी के अंग-उपांग की बार-बार सराहना न करे। __ हे भव्य ! तू दूसरी बाड़ का विचार करता हुआ स्त्री-कथा का वर्जन कर।
५-यद्यपि यथातथ्य वर्णन करने में जरा भी दोष नहीं, तथापि बिना कारण नारी के रूप, वर्ण एवं शृङ्गार का वर्णन नहीं करना चाहिए।
हे भव्य ! तू दूसरी बाड़ का विचार करता हुआ स्त्री-कथा का वर्जन कर।
६–कारण, नारी के रूप की सराहना–प्रशंसा करने से विषय-विकार की वृद्धि होती है। परिणाम चल-विचल हो जाते हैं, जिससे व्रत में विकृति आती है।
हे भव्य । तू दूसरी बाड़ का विचार करता हुआ स्त्री-कथा का वर्जन कर।
७-मल्लीकुमारी के रूप की प्रशंसा सुन कर छः राजाओं के परिणाम विचलित हो गये और उन्होंने मल्लीकुमारी के साथ सम्बन्ध करने के लिए अपनेअपने दूत भेजे। इससे मल्लीकुमारी के पिता और उनकी मित्रता की तान बिगड़ गई।
हे भव्य ! तू दूसरी बाड़ का विचार करता हुआ स्त्री-कथा का वर्जन कर।
८-इसी प्रकार मृगावती के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर चण्डप्रद्योतन राजा ने कोशम्बी नगरी को घेर कर भयंकर नर-संहार करवाया।
हे भव्य ! तू दूसरी बाड़ का विचार करता हुआ स्त्री-कथा का वर्जन कर।
७-मली कुमारी नों रूप सांभल्यो रे,
छहूं राजां रा चलीया परिणाम । त्यां सगाई करण ने दूत मेलीयो रे, विगड्यो मांहो मांहीं तान रे * ॥ भ०॥
८-मिरगावती रो रूप सांभल्यो रे, चंडप्रद्योत
राजान ।। तिण कोसंबी नगर घेरो दीयों रे, करायो मिनषां रो घमसांण रे ॥भ०॥
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