Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 279
________________ १३० रमणि रूप इमं वरणवै रे आप विषै मन रंग । मुगध लोकनई झवइ रे वाचं अंग अनंग रे प्रां० ॥ ४ ॥ अपवित्र मेलनी कोठला रे कलह काजल नौ ठांम । "बारह स्रोत्र वह सदा रे चरम दीवडी नांम रे प्रां० ॥ ५ ॥ देह उदारिक कारिमी रेषिण में भंगुर याद । सप्त धातु रोगांकुली रे जतन करतां जाय रे प्रां० ॥ ६ ॥ चक्री चोथउ जांणीयै रे देवें दीठो आय । ते पिण पिण में विणसोयो रे रूप अनित्य कहाय रे प्रां० ॥ ७ ॥ नारि कंथा विकथा कही रे जिनवर बीजं अंग । अनरथ दंड अंग सातमें रे कहै जिनहरष प्रसंग रे प्रां० ॥ ८ ॥ दूहा 'ब्रह्मचारी जोगी जती न करें नारि प्रसंग । एकण आसन बसतां थायै व्रत नो भंग रे ॥ १ ॥ पावक गाले लोहनई जा रहे पावक संग । 1 इम जांणी रे प्रांणीया तजि आसण त्रियरंग ॥ २ ॥ ढाल : ४ : सौदागर खाल चटण न दे रहनी तीजी वाड़ि हि चित्त विचारी नारि सहित वइसवी निवारी लाल । एकद आसण काम दोपावे चौधा व्रत नै दोष लगावें लाल ती० ॥ १ ॥ इम वैसंतां आसंगो थायें आसंगं काया फरसायं रे लाल । काया र विषै रस जार्ग तेहवी अवगुण धायें आगे लाल ती० ॥ २ ॥ जोवी श्री सिंघभूत प्रसिद्धी तन फरसे नीयाणी कीधौ लाल । द्वादशमी चक्र अवतरीयो चित्तै प्रतिबोध तेहनें दीयो लाल ती० ॥ ३ ॥ [ तेहनें उपदेश न लागो विरतन कायर घई भागो लाल । सातमी नरक तथा दुप सहीया, स्त्री फरसे अवगुण इम कहीया लालती० ॥ ४ ॥ काम विराम व दुध यांणी, नरक तणी साची सहिनांणी लाल । एक आसण दूषण जांणी परिहरि निज आतम हित आंणी लाल ती० ॥ ५ ॥ माय बहिन जो बेटी धाये ते बेसी उठी जाये लाल । कल एक मुहरत पाछे बेसवी जिनहर से आ लाल ती० ॥ ६ ॥ दूहा चित्र लिषत जे पूतली ते जोएहवी नांहि । केवलज्ञानी इम कहै दसवीकालिक मांहि ॥ १ ॥ नार वेद नरपति भयो चकुशील महाय । लष भव चौथो वाडि तजि सुरुलीयउ रूपी राय ॥ २॥ शील की ना १तीजे २ उपदेश लेस ३- रूलीवड Scanned by CamScanner

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