Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 283
________________ - 3 शील की मब बोर । र न कर अंग अंघोला... 1 . 1 " यानी शोभा न कर देहनी न करें तन 11.26. . ऊंगटणा पोटी वली न कर किण ही वारी । । सुणि' चेतन' सुणि तूं मोरी वीनती तो में सौष कहूं हितकारो रे सु० ।। उन्हा ताढा नीर सुन कर अंग अंघोल। केसर चंदन कुंकुमै षांत न करइ पोलो रे सु० ॥ १॥ घणमोला ने उजला न करै वस्त्र वणाव । घाते काम महा बली चौथा व्रत ने थावी रे सु० ॥२॥ 'कोकड़ कुंडल मुंदड़ी मोला मोतीआ हार पहिर नहीं। सोभा भणी जे थायै व्रतधारो रे ॥ सं०३ TER: काम दीपत जिणवर कह्या भूषण दूषण एह। अंग विभूषा टालवी कहै जिनहरष सनेहो रे सु० ॥४॥ ___ ढाल:११: रस . (आप सवारथ जग सहू रे एहनी). श्री वीर दोइ दस परषदा में उपदिस्या इम सील । जे पालसुं नव वाडि सुं ते लहिसी हो शिव संपद लील ॥१॥ सील सदा तुमें सेवज्यो रे फल जेह नो हो अति सरस अषीण । आठ करम" हणी रे ते पांमै हो ततषिण सुप्रीण सी० ॥२॥ जय' जलण अरि करि केसरी भय जाय सगला भाजि. सुर असुर नर सेवा कर मन बंछित हो सीझै सहु काममा सी० ॥३॥ जिन भुवन नीपावै नवी कंचण तणो नर कोइ । सोवन तणी कोइ कोडि द्यै१ सील सम वडि हो तो ही पुण्य न होय सी०॥४॥ नारि ने दूसण नर थकी तिम नारि थी नर दोष । । 1 एकडि २ विहं में सारिषी पालेवी हो मन धरीय संतोष सी० ॥५॥ निधि नयण सुरस' ३ भाद्रपदि बीज आलस छांडि। * जिन हरष दृढ़ व्रत पालिज्यो व्रत धारी हो जुगती नव वाडि सी० ॥६॥ इति श्री नववाडि सुद्ध शील विषये चतुपदी समाप्तः। सं० १८४४ वर्षे मिती जेष्ट वदि ८ दिने लिषतं विक्रमपुर मध्ये गुरुवारे लि० । पं० सुगुणप्रमोदमुनिः लिपि कृतं ॥ श्रीः ।। ६ : श्रीरस्तुः ॥ श्रीः॥पं। महिमा प्रमोद मुनि हुकुम कियो जिदै लिष दोनो श्री ॥६॥ कल्याणमस्तु ॥ सुभं भक्त । १-सुणि सुणि २-चेतन चेतन ३-चौथा व्रत नौ घावौ रे ४-माला ५–सो पहिरइ नही सोभा भणी-दीपण -करम अरियण -सुप्रवीण -जल १०-काज ११-कोडि १२-ए वाडि १३-सुर ससि Scanned by CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285 286 287 288 289