Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 281
________________ H शीलकी नव बाड काम वस हडहड हस रे प्रिय मेटो तनुताप रे । वात करै तन मन हरै रे विरहण कर विलाप रे वा० ॥ ५ ॥ राग विष सुणि हुलसै रे हास अनरथ दंड रे । रावणि घरणि हासा थकि रे रावण बघ.थयो जोय रे वा० ॥ ६॥ ब्रह्मचारी नवि सामल रे एहवा विरही वैण रे ।... कहे जिनहरष धीरज टुलै रे चित्त चलै सुणि वैण रे वा० ॥७॥ छठी वाडै इम कह्यो चंचल चित्त म डिगाय । (P षाधौ पीधौं विलसीयो रे तिण संचित म लगाय ॥१॥ काम भोग सुष प्रारथ्या आप नरक निगोद । 1251वपरतिष तौ कहिवौ किसं विलसै जेह विनोद ॥ २॥ ढाल : ७ it :: (आज निहेजो रे दीसइ नाहलौ एहनी) भर जोबन धन सामग्री लही पामी अनपम भोग । "पांचे इंद्री ने वसि भोगव्या पांचे भोग संजोग भ० ॥१॥ ते चीतारे ब्रह्मचारी नही धुरि भोगवीया सुष। आसीविस विससाल समोपमा चीतास्या दे दुष भ० ॥२॥ सेठ मांकंदी अंगज़ जांणीय जिणरक्षत इण नाम। जक्ष तणी सिष्या सह वीसरी व्यामोहित वसि काम भ० ॥३॥ रयणा देवी सम मुख जोईये पूरब प्रीत संभार । ते भापी तरवारः बींधीयो नाष्यो जलधि मजार भ०॥४॥ जोवौं जिनपालिक पंडित थयौं न कीधौ तास वेसास । मूलगी पिण प्रीति न मन धरी सुष संयोग विलास भ०॥५॥ सेलग जक्ष तत षिण ऊघस्यौ मिलीयो निज परिवार। कहै जिनहरष न पूरब कोलीया संभार नरनार भ०॥६॥ बाटा पारा चरचरा मीठा भोजन जेहन मधुरा मोल करायला रसना सहु रस लेह ॥१॥ जेहन नी रसना वसि नहीं चाहै सरस आहार । "ते पांमे दुषप्राणीयो चौगति रुलै संसार ॥२॥ : ढाल :८: , .. (चरणाली चामुंड रण चढे एहनी) ब्रह्मचारी सुणि वातडी निज आतम हित जांणी रें। कामना वाडि म भांजे सातमी सुणि जिनवर नी वाणी रे ७० ॥ १ ॥ १-होय २–रांम ३–धीरिम'टलइ रे चित्त टले सहु सैण रे वामिल हसणार Scanned by CamScanner

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