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रमणि रूप इमं वरणवै रे आप विषै मन रंग । मुगध लोकनई झवइ रे वाचं अंग अनंग रे प्रां० ॥ ४ ॥ अपवित्र मेलनी कोठला रे कलह काजल नौ ठांम ।
"बारह स्रोत्र वह सदा रे चरम दीवडी नांम रे प्रां० ॥ ५ ॥
देह उदारिक कारिमी रेषिण में भंगुर याद ।
सप्त धातु रोगांकुली रे जतन करतां जाय रे प्रां० ॥ ६ ॥
चक्री चोथउ जांणीयै रे देवें दीठो आय ।
ते पिण पिण में विणसोयो रे रूप अनित्य कहाय रे प्रां० ॥ ७ ॥
नारि कंथा विकथा कही रे जिनवर बीजं अंग ।
अनरथ दंड अंग सातमें रे कहै जिनहरष प्रसंग रे प्रां० ॥ ८ ॥
दूहा
'ब्रह्मचारी जोगी जती न करें नारि प्रसंग ।
एकण आसन बसतां थायै व्रत नो भंग रे ॥ १ ॥
पावक गाले लोहनई जा रहे पावक संग ।
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इम जांणी रे प्रांणीया तजि आसण त्रियरंग ॥ २ ॥
ढाल : ४ :
सौदागर खाल चटण न दे
रहनी
तीजी वाड़ि हि चित्त विचारी नारि सहित वइसवी निवारी लाल । एकद आसण काम दोपावे चौधा व्रत नै दोष लगावें लाल ती० ॥ १ ॥ इम वैसंतां आसंगो थायें आसंगं काया फरसायं रे लाल ।
काया र विषै रस जार्ग तेहवी अवगुण धायें आगे लाल ती० ॥ २ ॥
जोवी श्री सिंघभूत प्रसिद्धी तन फरसे नीयाणी कीधौ लाल ।
द्वादशमी चक्र अवतरीयो चित्तै प्रतिबोध तेहनें दीयो लाल ती० ॥ ३ ॥
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तेहनें उपदेश न लागो विरतन कायर घई भागो लाल ।
सातमी नरक तथा दुप सहीया, स्त्री फरसे अवगुण इम कहीया लालती० ॥ ४ ॥ काम विराम व दुध यांणी, नरक तणी साची सहिनांणी लाल ।
एक आसण दूषण जांणी परिहरि निज आतम हित आंणी लाल ती० ॥ ५ ॥
माय बहिन जो बेटी धाये ते बेसी उठी जाये लाल ।
कल एक मुहरत पाछे बेसवी जिनहर से आ लाल ती० ॥ ६ ॥
दूहा
चित्र लिषत जे पूतली ते जोएहवी नांहि । केवलज्ञानी इम कहै दसवीकालिक मांहि ॥ १ ॥ नार वेद नरपति भयो चकुशील महाय । लष भव चौथो वाडि तजि सुरुलीयउ रूपी राय ॥ २॥
शील की ना
१तीजे २ उपदेश लेस ३- रूलीवड
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