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परिशिष्टमी चिनहर्ष रचित शील की नव पाड़
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हिव प्राणी जाणी करी राषि प्रथम ए वाडि । 'जो ए भांजी पइसिसी प्राणे प्रथम महा धाडि ॥१॥
जेहड़ तेहड़ पलकती प्रमदा गय मयमत्त । ... , सोल वृक्ष ऊपाडिसी वाडि विभावि तुरत्त ॥२॥ .
। ढाल : २: ..
: : (नणदल री): भाव घरी नित पालीयई गरूऔ ब्रह्मवत सार हो भवीयण । :जिण थी सिव सुष पांमीय सुंदर तन सिणगार हो भ०॥१ भा०॥ स्त्री पसु पंडग जिहां वसइ तिहां रहिवो नहीं वास हो भ० । एहनी संगति वारीय व्रत नौ करै विणास हो भ० ॥२ भा०॥ मंजारी संगति रमें कूकड़ मूसग मोर हो भ०। कुसल किहांयी तेहनइ पामें दुष अघोर हो भ० ॥ ३ भा०॥ अगनि कुंड पासइ रह प्रघते घृत नौ कुंभ हो. भ० । नारी संगति पुरुषनई रहइ किसी परिबंभ हो भ० ॥ ४ भा०॥ सीह गुफा वासी जती रह्यो कोस्या चित्रसाल हो भ०।
तुरत पडयो वसि तेहनई देस गयौ नेपाल हो भ०॥५ भा०॥ । विकल अकल विण वापडा पंषी करता केल हो भ०। 1" देषी लषणा महासती रूली घणुं इण मेल हो भ०॥ ६ भा०॥
चित चंचल पंडग नरां वरतै तीज वेद हो । तजि संगति रति तेहनी कहे जिनहरष उमेद हो- भ०॥७भा०॥
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अथवा नारी.एकली भली न संगति तास । धर्मकथा पिण न कहिवी बइसी तेहनइ पास ॥१॥ तेहथी अवगण हवइ घणा संका पामें लोक । आवै अछतो शल सिरि बोजी बाडि बिलोक ॥२॥
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प्रांणी धरि संबेग विचार एहनी) जाति रूप कुल देसनी रे रमणिकथा कहै जेह । तेह नौ ब्रह्मव्रत किम रहै रे किम ग्है व्रतसं नेह रे ॥१॥ प्रांणी नारीकथा निवारि तुं तो बीजो बाडि संभार रे प्रां०। चंद्रमुखी मृगलोयणी रे वेणी जाणि भयंग । र , दीपसिख सम नासिका रे अधर प्रवाली रंग रेप्रां ॥२॥ वाणी कोइल जेहवी रे वारण कुंभ उरोज ।
"हंसगमणि कृसहरिकटी रे करयुग चरण सरोज रे प्रा० ॥३॥ १-जै ए भांजी पससी प्राणइ प्रमदा धाडि
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