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________________ श्री जिनहर्ष रचित शील की नव बाड़... श्री नेमीसर चरण युग प्रणम ऊठि परभात । बावीसम जिन जगतारु ब्रह्मचार विष्यात ॥१॥ सुंदर अपछर सारिषी रति सम राजकुमार । भर जोवन में जुगति सुं छोड़ी राजुल नारि ॥२॥ ब्रह्मचर्य जिण पालयो धरतां दुद्धर जेह । तेह तणा गुण वरणवू जिम पावन हुवइ देह ॥ ३॥ सुरगुरु जौ पोत कहै रसना सहस वणाइ । ब्रह्मचर्य ना गुण घणा तौ पिण कह्या न जाइ ॥४॥ गलित पलित काया थई तउही न मकै आस । तरुण पणे जे व्रत धरै हुँ बलिहारी तास ॥५॥ जीव विमासी जोइ तं विषय म राचि गिवारि । थोडा सुष ने कारणइ मूरख घणउ म हारि॥६॥ दस दृष्टांते दोहिलौ लाधउ नर भवसार । पालि सील नव वाडि सं सफल करी अवतार ॥७॥ ढाल:१: (मन मधुकर मोही रह्यउ एहनी) सील सुतरवर सेवीय व्रत मांहि गरूवौ जेह रे। दंभ कदाग्रह छोडिने धरीय तिण सुं नेह रे सी० ॥१॥ जिन शासन वन अति भलौ नंदन वन अनुहार रे। जिनवर वन पालक तिहां करुणारस भंडार रे सी० ॥२॥ मन थाणइ तरु रोपियउ बीज भावना बंभरे। श्रद्धा सारण तिहां वसै विमल विवेक ते अंभ रे सी० ॥३॥ मूल सुदृढ़ समकित भलउ खंघ नवे तत्त्व दाष रे । साष महाव्रत तेहनी अणुव्रत ते लघ साष रे सी०॥४॥ श्रावक साधु तणा घणा गुणगण पत्र अनेक रे । मउर करम सुभ बंधनउ परिमल गुण अतिरेक रे सी० ॥५॥ उत्तम सुरसुष फूलड़ा सिवसुष ते फल जांण रे । जतनकरी वृष राषिवउ हीय. अतिरंग आणि रे सी०॥६॥ उत्तराध्ययनई सोलमें बंभसमाही ठांण रे। कीधी तिण तरु पाषती ए नव वाडि सुजांण रे सी०॥७॥ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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