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नेमिनाथ और राजीमती.
[ इसका सम्बन्ध दाल १ दोहा १-२ ( पृ० ३ ) के साथ है।] मिथिला नगरी में उग्रसेन नामक एक उच्चवंशीय राजा राज्य करते थे। इनके धारिणी नाम की राणी थी। के एक पुत्र था, जिसका नाम कंस था और एक पुत्री थी, जिसका नाम राजीमती था। राजीमती अत्यन्त सुशील, मन्दर और सर्व लक्षणों से सम्पन्न राजकन्या थी। उसकी कान्ति विद्युत की तरह देदीप्यमान थी।
उस समय शौर्यपुर नामक नगर में वसुदेव, समुद्र विजय वगैरह दश'दशाह (यादव) भाई रहते थे। सबसे बोटे वसदेव के रोहिणी और देवकी नामक दो राणियाँ थीं। प्रत्येक राणी के एक-एक राजकुमार था। कुमारों के नाम क्रमशः राम (बलभद्र ) और केशव (कृष्ण थे।
. राजा समुद्रविजय की पनि का नाम शिवा था। शिवा की कख से एक महा भाग्यवान और यशस्वी पुत्र का जन्म हुआ। इसका नाम अरिष्टनेमि रक्खा गया।
अरिष्टनेमि जब काल पाकर युवा हुए तो इनके लिए केशव (कृष्ण ) ने राजीमती की मांग का प्रस्ताव राजा उग्रसेन के पास भेजा।
अरिष्टनेमि शौर्य-वीर्य आदि सब गुणों से सम्पन्न थे। उनका स्वर बहुत सुन्दर था। उनका शरीर सर्व शुभ लक्षण और चिह्नों से युक्त था। शरीर-सौष्ठव और आकृति उत्तम कोटि के थे। उनका वर्ण श्याम था। पेट मछली के आकार-सा सुन्दर था।
ऐसे सर्व गुण सम्पन्न राजकुमार के लिए राजीमतीकी मांग को सुनकर राजा उग्रसेन के हर्ष का पारावार न रहा। उन्होंने कृष्ण को कहला भेजा-"यदि अरिष्टनेमि विवाह के लिए मेरे घर पर पधारें, तो राजीमती का पाणिग्रहण उनके साथ कर सकता हूँ।"
कृष्ण ने यह बात मंजूर की और विवाह की तैयारियां होने लगी।
नियत दिन आने पर कुमार अरिष्टनेमि को उत्तम औषधियों से स्नान कराया गया। अनेक कौतुक और मांगलिक कार्य किए गए। उत्तम वस्त्राभूषणों से उन्हें सुसज्जित किया गया। वासुदेव के सब से बड़े गन्धहस्ती पर उनको बिठाया गया। उनके सिर पर उत्तम छत्र शोभित था। दोनों ओर चंवर डोलाए जा रहे थे। यादव वंशी क्षत्रियों से वे घिरे हुए थे। हाथी, घोड़े, रथ और पायदलों की चतुरंगिणी सेना उनके साथ थी। भिन्न-भिन्न वाजिन्त्रों के दिव्य ओर गगनस्पशी शब्दों से आकाश गुंजायमान हो रहा था।
- इस प्रकार सर्व प्रकार की रिद्धि और सिद्धि के साथ यादव-कुलभूषण अरिष्टनेमि अपने भवन से अग्रसर हए।"
- अभी बरात राजा उग्रसेन के यहां नहीं पहुंची थी कि रास्ते में कुमार अरिष्टनेमि ने पीजरों और बाड़ों में भरे हुए और भय से कांपते हुए दुःखित प्राणियों को देखा। यह देखकर उन्होंने अपने सारथी से पूछा : "सुख के कामी इन प्राणियों को इन बाड़ों और पीजरों में क्यों रोक रक्खा है ?"
. .. इस पर सारथी ने जवाब दिया : "ये पशु बड़े भाग्यशाली हैं, आप के विवाहोत्सव में आए हुए बराती लोगों की दावत के लिए ये हैं।" -उत्तराध्ययन सत्र अ०२२ के आधार पर
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