Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 261
________________ शील की नव बाड़ देखकर वह घबड़ा गई। उसने अपने आप को सँभाला, और सोचा- “यह समय शोक करने का नहीं है । जो भावी था वह हो गया। अब मेरा कर्तव्य है कि मैं पतिदेव को धैर्य दूं । उनका शरीर समाधि पूर्वक छूटे, ऐसा प्रयत्न करूँ।” युगबाहु के सिर को अपनी गोद में लेकर वह उन्हें समझाने लगी। उसने पति को उस भाई के प्रति द्वेष व पत्नी के प्रति मोह न रखने का उपदेश दिया। युगबाहु पर पत्नी के उपदेशों का असर हुआ । शान्तभाव से समाधिपूर्वक देह का विसर्जन कर वह देवलोक में उत्पन्न हुआ । मदनरेखा ने सोचा- "अब इस राज्य में रहना खतरे से खाली नहीं है। मणिरथ मुक्त पर बलात्कार करने का प्रयत्न कर सकता है। वह मुझे भ्रष्ट करने का प्रयत्न करेगा। इससे अच्छा होगा कि कहीं दूर चली जाऊँ ।” ऐसा सोचकर वह वहाँ से निकल पड़ी। वह गर्भवती थी। रास्ते में उसे घोर वन का सामना करना पड़ा, जहाँ आदमी की छाया तक का भी निशान नहीं था। वह एक वृक्ष के नीचे आराम करने लगी। कुछ समय पश्चात् उसे प्रसव पीड़ा होने लगी और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उस नवजात शिशु को कोमल पत्तों पर सुला, उसकी उँगली में अपने नाम की मुद्रा डाल कर, वह अशुचि निवारणार्थ नदी किनारे पहुँची। उधर एक मदोन्मत्त हाथी ने मदनरेखा को सूंड में पकड़ कर आकाश में बैठा चला जा रहा था। अनिंद्य सुन्दरी देखकर वह मुग्ध हो गया। वह विमान आपने विमान को वापस क्यों लौटाया ?” जा रहा था, किन्तु तुम जैसी रूप यौवनसम्पन्ना, रूपवती स्त्री को पाकर मैं वापस लौट रहा हूँ। तुम्हें घर पहुँचा कर मैं वापस चला जाऊँगा ।" मदनरेखा ने कहा- "मैं भी साधु दर्शन की इच्छा रखती हूं। अतः मुझे भी दर्शन करवा दीजिये ।” मणिप्रभा ने स्वीकार कर लिया और अपना विमान घुमा दिया। थोड़े समय में ही वह विमान मणिचूड़ मुनि के पास पहुँचा। मुनि मणिचूड़ ने उपदेश दिया। मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर मणिप्रभ ने मदनरेखा के प्रति अपनी भावना बदल दी और उसे अपनी बहिन की तरह देखने लगा। मुनि से मदनरेखा ने पूछा- "मैं जंगल में अपने पुत्र को छोड़ कर आई उसका क्या हुआ ?" मुनि ने कहा“उसको मिथिला के पद्मरथ राजा, जो घूमने के लिये आये थे, ले गये हैं ।" यह सुन कर मदनरेखा निश्चिन्त हो गई और दीक्षा लेकर उसने आत्म-कल्याण किया । उछाल दिया। आकाश मार्ग से एक मणिप्रभ नामक विद्याधर मदनरेखा को देख उसने उसको अपने विमान में बैठा लिया। को वापस लौटाने लगा । मदनरेखा ने पूछा - "आप तो देव ने कहा मैं अपने पिता, जो साधु हैं, उनके दर्शन करने अपने विमान में उसके रूप को इधर जा रहे थे। आ १०८ Bras के साइन 200 किमी में B Please ger 14 de प्र Scanned by CamScanner

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