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परिशिष्ट-क : कथा और दृष्टान्त
१११ लगी। उन्होंने आगे जाकर देखा तो सैकड़ों मनुष्यों की हड़ियां एवं खोपड़ियों का ढेर लगा हुआ था। पास में शूली पर लटकता हुआ एक पुरुष कराह रहा था। यह हाल देख दोनों भाई घवरा गये और शूली पर लटकते हुए पुरुप से सारा वृत्तान्त पूछा। उसने कहा-"मैं भी तुम्हारी ही तरह जहाज के टूट जाने पर यहां आ पहुँचा था। में काकन्दी नगरी का रहनेवाला घोड़ों का व्यापारी हूँ। पहले देवी मेरे साथ भोग भोगती रही। एक समय एक छोटे से अपराध के हो जाने पर कुपित होकर इसने मुझे यह दण्ड दिया है। न मालूम यह देवी तम्हें किस समय और किस ढंग से मार देगी । इसने पहले भी कई मनुष्यों को मार कर यह हड्डियों का ढेर कर रखा है।" दोनों भाइयों ने जब शूली पर लटकते हुए पुरुष की ये बातें सुनी तो वे त्राण का उपाय पूछने लगे। उस पुरुष ने कहा "पूर्व दिशा के वन खण्ड में शैलक नामका एक यक्ष रहता है। उसकी पूजा करने से वह प्रसन्न होकर तुम्हें देवी के फन्दे से छुड़ा देगा।" यह सुनकर दोनों भाई यक्ष के पास आकर उसकी स्तुति करने लगे और देवी के फन्दे से छुटकारा पाने की प्रार्थना करने लगे।
_यक्ष उनकी स्तुति से प्रसन्न हुआ और बोला-"तुम निर्भय रहो। मैं तुम्हें इच्छित स्थान पर पहुँचा दूंगा। किन्तु मार्ग में देवी आकर अनेक प्रकार के हाव-भाव करके अनुकूल प्रतिकूल वचन कहती हुई परिषह-उपसर्ग देगी। यदि तुम उसके कहने में आकर उस पर आसक्त हो जावोगे तो मैं तुम्हें मार्ग में ही समुद्र में फेंक दूंगा।" यक्ष की इस शर्त को दोनों भाइयों ने मान लिया। यच अश्व का रूप बना, दोनों भाइयों को अपनी पीठ पर बिठला, आकाश मार्ग से चला .. इतने में वह देवी आ पहुँची । देवी ने उनको वहाँ न देखा तो अवधि-ज्ञान से जान लिया कि वे दोनों भाई शैलक यक्ष के पीठ पर जा रहे हैं। वह शीघ्र वहां आई और अनेक प्रकार के हाव-भाव से अनुकूल प्रतिकूल वचन कहती हुई, करुण विलाप करने लगी। जिनपाल ने उसके वचन पर कोई ध्यान नहीं दिया। किन्तु जिनरिख उसके वचनों में फंस गया, वह उस पर मोहित होकर, प्रेम के साथ रयणा देवी को देखने लगा। जिससे यक्ष ने जिनरिख को अपनी पीठ से नीचे फेंक दिया। नीचे गिरते ही जिनरिख को रयणादेवी ने शूली में पिरो दिया और बहुत कष्ट देकर उसे प्राणरहित करके समुद्र में फेंक दिया।
जिनपाल देवी के वचनों में नहीं फंसा। इसलिए यक्ष ने आनन्द पूर्वक उसको चम्पा नगरी पहुंचा दिया। वहां पहुंच कर जिनपाल अपने माता-पिता से मिला। कई वर्षों तक सांसारिक सुखों को भोग कर दीक्षा धारण की। वर्षों तक संयम पालनकर वह सौधर्म देवलोक में गया, वहाँ से महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध-पद को प्राप्त करेगा।
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