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आधार - २ :
पमायड्डाणं
[ उत्तराध्ययन अ० ३२ ]
[ उत्तराध्ययन' के १६ वें अध्ययन के अतिरिक्त उत्त० अ० ३२ तथा दशवैकालिक अ० ८ में भी शीलसमाधि के स्थानकों का विवरण है। सम्बंधित स्थलों को उद्धृत किया जाता है। ]
रसा पगामं न निसेवियन्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं ।
दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥ १० ॥ जहा दबग्गी परिन्धणे वणे समारुओ नोवसमं उबेइ । एविन्दियग्गी विपगाम भोइणो न बम्भवारिस्स हियाय करसई ॥ ११ ॥ विवित्तसेज्जा सणजन्तियाणं ओमासणाणं दमिइन्दियाणं । न रागसत्तू घरिसेइ चित्तं पराइयो बाहिरियोसहि ॥ १२ ॥ जहा बिराला सहस्स मूले न मूसगाणं वसही पत्था । एमेव इत्थीनियस मज्झे न बम्भवारिस्स समो निवासो ।। १३ । न रूवलावण्णविलासहार्स न जपियं इगियपेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता दटुं ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ अदंसणं चेव अपत्थणं च अचिन्त थेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियकाणां हियं सया बम्भवए रयाणं ।। १५ ।। कामं तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया वो भइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तदियं ति नया विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो ।। १६ ।। मोक्खाभिकंखिरस व माणवस्त संसारभीरुस्स ठिवस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्यिओ बालमणोहराओ ।। १७ ।। एए य संगे समइक्कमित्ता सुदुत्तरा चेव भवन्ति सेसा । जहा महासागरमुत्तरिता नई भने अवि गंगासमाणा ॥ १८ ॥ कामाणुगिद्धिप्यभवं खु दुक्खं सम्वरस लोगस्स सदेवगस्स । जं फाइयं माणसियं च किचि तरसन्तगं गच्छ बीयरागो ।। १६ ।। जाय किंपागफला मणोरमा रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा खुड्डूए जीविय पञ्चमाणा एओवमा कामगुणा विवागे ॥ २० ॥ जे इन्द्रियाणं विसया मणुन्ना न तेसुरभावं निसिरे कयाइ ।
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न यामणुन्नेसु मर्ण पि कुज्जा समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ २१ ॥
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