Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 249
________________ कथा-१७ महारानी. मृगावती. [इसका संवन्ध टाल ३ गाथा ८ ( पृ० १९ ) के साथ है ] कोशाम्बी नगरी में शतानिक नाम के राजा राज्य करते थे। रूप-लावण्य-सम्पन्ना मृगावती उनकी पटरानी थी। वह भगवान् महावीर की परम उपासिका थी। एक समय एक दक्ष चित्रकार राजसभा में आया। महाराजा ने उसकी चित्रकला पर प्रसन्न होकर उसे चित्र-.. शाला को चित्रित करने का काम सौंपा। चित्रकारी करते हुए चित्रकार की दृष्टि पर्दे के अन्दर की महारानी मृगावती के अँगूठे पर पड़ी। केवल अँगूठे को देखकर उसने महारानी मृगावती' का सम्पुर्ण चित्र बना लिया। चित्रशाला को सुन्दर चित्रों से चित्रित करने का कार्य पूरा हुआ। एकबार महाराजा स्वयं चित्रकारी को देखने के लिए चित्रशाला में आये। वहीं मृगावती के चित्र को देखा। मृगावती के जंघा पर काला तिल चित्रित देखकर महाराजा का मन शंका-ग्रस्त हो गया। वे बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने चित्रकार के शिरोच्छेद का आदेश दिया। चित्रकार के बहुत अनुनय-विनय करने पर और देव-वरदान की बात करने पर महाराजा ने उसका अंगूठा कटवाकर उसके देश-निकाले का आदेश दे दिया। क्रुद्ध चित्रकार ने वहां से निकल कर महारानी मृगावती का पुनः वैसा ही चित्र बनाया और अवन्ति के महाराजा चण्डप्रद्योतन को भेंट किया। चण्डप्रद्योतन अपूर्व सुन्दरी मृगावती के चित्र को देख, उसपर आसक्त हो गया। चण्डप्रद्योतन ने शतानिक के पास दूत भेजकर मृगावती की मांग की। महाराजा शतानिक ने इस घृणित मांग को ठुकरा दिया और दूत का अपमान कर उसे निकाल दिया। चण्डप्रद्योतन ने जब यह समाचार सुना तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और अपनी सेना सजाकर शतानिक पर चढ़ाई करने के लिए रवाना हो गया। इधर शतानिक ने भी युद्ध की तैयारी कर ली। अंततः दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। महाराजा शतानिक की मृत्यु अतिसार हो जाने से हो गई। मृगावती विधवा हो गई। सारी कोशाम्बी में शोक छा गया। शतानिक की मृत्यु से चण्डप्रद्योतन अत्यन्त प्रसन्न हुआ। शतानिक के एक पुत्र था। उसका नाम था उदायन किन्तु राजकुमार की उम्र छोटी थी। शोक के बारह दिन व्यतीत होनेपर महारानी मृगावती ने मंत्रियों को बुलाकर पुनः यद्ध की तैयारी के लिए राय मांगी। मंत्रियों ने कहा-"महारानी जी! चण्डप्रद्योतन बहुत दुष्ट है। उसकी विशाल सेना के सामने हम ज्यादा दिन ठहर नहीं सकते। चण्डप्रद्योतन को हमें अन्य उपाय से ही जीतना चाहिए।" तब विदुषी महारानी ने एक उपाय सोचा। अपने खास दूत को बुलाकर मंत्रियों की सलाह से चण्डप्रद्योतन को महारानी ने कहला भेजा-"महारानी मृगावती आपके प्रस्ताव को स्वीकार करती हैं किन्तु उनकी एक शर्त है। पति की मृत्यु से वे शोकविह्वल हैं। उनका पुत्र भी अभी बालक है। शोक से निवृत्त होने के बाद महारानी आपसे अपने पुत्र का राज्याभिषेक कराना चाहती हैं। अतः बाहरी शत्रुओं से बचने के लिए तथा राजकुमार की सुरक्षा के लिए एक दृढ़ किला बनवा दें और नगरी को धन-धान्य से पूरित कर राजपुत्र को राजगद्दी पर बैठा दें। इसके बाद महारानी आपकी आज्ञा का पालन करने को तैयार रहेंगी।" दूत से महारानी का सन्देश सुनकर चण्डप्रद्योतन बहुत प्रसन्न हुआ। महारानी की इच्छानुसार उसने एक इन दर्ग बना दिया एवं उसको धन-धान्य से पूरित कर दिया। पुत्र के राज्याभिषेक के बहाने युद्ध की समस्त तैयारी कर महारानी ने किले के फाटक वन्द करवा दिए। S Scanned by CamScanner

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