Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 253
________________ शील की नव बाड़ द्रौपदी नहीं दूंगा। मैं स्वयं युद्ध के लिए सज्जित होकर आ रहा हूँ।" ऐसा कह उसने सारथी का अपमान कर उसे पिछले द्वार से निकाल बाहर किया। प दारुक ने वापस आ सारी बात कृष्ण से कही। कृष्ण वासुदेव ने शस्त्र सज्ज हो युद्ध के लिए प्रस्थान कर दिया। इधर पद्मनाभ भी अपनी चतुरंगी सेना के साथ युद्ध भूमि में आया। दोनों में भयंकर संग्राम हुआ। संग्राम में पद्मनाभ की सेना कृष्ण के सामने नहीं टिक सकी। वह हारकर चारों ओर भागने लगी। पद्मनाभ सामर्थ्य हीन हो गया। अपने को असमर्थ जान वह शीघ्रता से अमरकंका राजधानी की ओर भागा और उसने नगर में प्रवेश कर नगर के फाटक बन्द करवा दिये। कृष्ण वासुदेव ने उसका पीछा किया और नगर के दरवाजों को तोड़ अन्दर घुसे। महा शब्द के साथ उनके पाद प्रहार से नगर के प्राकार, गोपुर अट्टालिकाएँ, चरिय तोरण आदि सब गिर पड़े। पद्मनाभ के श्रेष्ठ महल भी चारों ओर से विशीर्ण हो, पृथ्वी पर धंस पड़े। 5 . पद्मनाभ राजा भयभीत होगया और द्रौपदी देवी के पास आ उसके चरणों में गिर पड़ा। द्रौपदी बोली : "क्या तुम अब जान गये कि कृष्ण वासुदेव जैसे उत्तम पुरुष के साथ अप्रिय करके मुझे यहाँ लाने का क्या नतीजा है। खैर अब भी तुम शीघ्र जाओ, स्नान कर गीले वस्त्र पहन, वस्त्र का एक पल्ला खुला छोड, अंतपुर की रानियों आदि के साथ प्रधान श्रेष्ठ रत्नों की भेंट साथ ले मुझे आगे रख कृष्ण वासुदेव को हाथ जोड़ उनके चरण में पड़, उनकी शरण ग्रहण करो।" _पद्मनाभ द्रौपदी के कथानुसार कृष्ण वासुदेव के शरणागत हुआ। वह हाथ जोड़ पैरों में गिर कर बोला : "हे देवानुप्रिय ! मैं आपकी वृद्धि से लेकर अपार पराक्रम को देख चुका । मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ। मुझे क्षमा करें। मैं पुनः ऐसा काम नहीं करूँगा।" -ऐसा कह हाथ जोड़ उसने कृष्ण वासुदेव को द्रौपदी देवी को सौंप दिया। -कृष्ण बोले- "हे अप्रार्थित की प्रार्थना करने वाले पद्मनाभ ! क्या तू नहीं जानता कि तू मेरी बहन द्रौपदी को यहां ले आया है ? फिर भी अब तुझे भय करने की जरूरत नहीं।” - कृष्ण द्रौपदी के साथ रथ पर आरूढ़ हो, जहाँ पांचों पाण्डव थे वहां आये और अपने हाथों से द्रौपदी को पांच पाण्डवों को सौप दिया। Scanned by CamScanner

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