Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 244
________________ परिशिष्ट-क कथा और दृष्टान्त धारणी उसकी रानी थी तथा सुबाहु उसकी कन्या । वह रूप, यौवन और लावण्य में उत्कृष्ट थी। उसका शरीर उत्कृष्ट था सुबाहु कन्या के चातुर्मासिक स्नान महोत्सव का दिन आया जानकर महाराज ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर आज्ञा दी - कल सुबाहु कुमारी का चातुर्मासिक स्नान है। इसलिए जल-थल में उत्पन्न होनेवाले पंचवर्णीय पुष्पों का मण्डप बनाओ और उसमें श्रीदामकाण्ड लटकाओ ।” ६१ कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया। महाराजा ने स्वर्णकारों को बुलाकर कहा - "शीघ्र ही राजमार्ग के बीच पुष्प-मण्डप में विविध प्रकार के पाँच वर्गों के चावलों से नगर का चित्र आलेखित करो और उसके मध्य भाग में बाजोट रखो।" स्वर्णकारों ने महाराज की आज्ञा का पालन किया। इसके बाद महाराजा गन्ध हस्ति पर आरूढ़ हो कोरंट पुष्पों से सजे हुए छत्र-चंबर को धारण कर, चतुरंगिणी सेना से सुसज्जित हो, राजकुमारी सुबाहु को आगे बैठाकर नगर के मध्य होते हुए पुष्प-मण्डप में पहुँचे। वहाँ पहुँचकर महाराजा हाथी से नीचे उतरे और पूर्व दिशा की और मुँहकर सिंहासन पर आसीन हुए। अंतःपुर की स्त्रियों ने सुबाहु कन्या को पाट पर बैठाकर सोने और चांदी के कलशों से नहलाया । फिर उसे सर्व वस्त्रालंकारों से सुसज्जित कर पिता को नमस्कार करने के लिए भेजा। राजकुमारी ने पिता के चरणों में नमस्कार किया। पिता ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया। आलंकारों से सज्जित पुत्री के रूप-यौवन को देखकर महाराजा विस्मित हुए। अपने मंत्री वर्षधर को बुलाकर वे बोले – “मंत्री ! तुम अनेक ग्राम, नगर तथा राजा-महाराजाओं के पास कार्यवश जाते हो यह बताओ कि आज सुबाहु कुमारी का जैसा चार्तुमासिक स्नान महोत्सव हुआ है, बेसा पहले भी कहीं देखा है ?" ! मंत्री ने कहा- " स्वामी मैं आपके कार्य के लिए दूत बनकर किसी समय मिथिला नगरी गया था। वहाँ कुम्भ राजा की पुत्री, प्रभावती देवी की आत्मजा, मल्लिनामकी राजकुमारी का स्नान-महोत्सव देखा। उस स्नान महोत्सव के सामने 'सुबाहुकन्या का स्नान - महोत्सव लाखवें हिस्से की भी बराबरी नहीं कर सकता ।" इसके बाद मंत्री ने मल्लिकुमारी के रूप का वर्णन किया । मंत्री के मुख से मल्लिकुमारी की प्रशंसा सुनकर राजा उसकी ओर आकर्षित हो गया और राजकुमारी की मँगनी के लिए अपना दूत कुम्भ राजा के पास मिथिला भेजा । उस समय काशी नामक जनपद में वाराणसी नाम की नगरी थी। एक बार मल्लिकुमारी के दिव्य कुण्डल युगल का संधि भाग टूट गया। को बुलाकर कुण्डल युगल को जोड़ने की आज्ञा दी । तब क्रुद्ध महाराजा ने उन समस्त स्वर्णवाराणसी पहुंचे। वहाँ के राजा को स्वर्णकारों ने बहुत प्रयत्न किया, पर वे कुंडल को जोड़ने में असमर्थ रहे। कारों के देश निकाले का आदेश दिया। स्वर्णकार काशी देश की राजधानी मूल्य उपहार भेंटकर कहने लगे "स्वामी! हमलोगों को मिथिला नगर के कुंभ राजा ने देश निष्कासन की आज्ञा दी है । वहाँ से निर्वासित होकर हमलोग यहाँ आये हैं। हमलोग आपकी छत्र-छाया में निर्भय होकर सुखपूर्वक रहने की इच्छा करते हैं ।" प वहाँ शंख नामक राजा का राज्य था। महाराजा ने नगर के समस्त स्वर्णकारों काशी नरेश ने स्वर्णकारों से पूछा - "कुंभ राजा ने आपको देश निकाले की आज्ञा क्यों दी ?” स्वर्णकारों ने उत्तर दिया- "स्वामी! कुंभ राजा की पुत्री मल्लिकुमारी का कुंडल युगल टूट गया। हमें जोड़ने का कार्य सौंपा गया किन्तु हम लोग उसके संधिभाग को जोड़ नहीं सके, जिससे क्रुद्ध हो महाराजा ने देश निकाले की आज्ञा दी है ।" Scanned by CamScanner

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