Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 242
________________ मलिक [ इसका सम्बन्ध टाल ३ गा०७ ( पृ० १९) के साथ है ]. विदेह की राजधानी मिथिला में कुम्भ नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम प्रभावती था। उसके मालदिन्न नाम का एक राजकुमार और मल्लि नाम की एक पुत्री थी। ' ___ मष्टि का सौंदर्य अनुपम था। उसके केश काले थे। नेत्र अत्यन्त सुन्दर थे। विम्ब फल की तरह उसके अधर छाल थे। उसके दांतों की पंक्तियां श्वेत थीं। उसका शरीर श्रेष्ठ कमल के गर्भ की कान्तिवाला था। उसका श्वासोवास विकस्वर कमल की तरह सुगन्धित था। देखते-देखते मलिकुमारी बाल्यावस्था से मुक्त हुई एवं रूप में, यौवन में, लावण्य में, अत्यन्त उत्कृष्ट शरीरवाली हो गयी। उस समय अंग नाम का एक जनपद था। उसमें चंपा नाम की नगरी थी। वहीं राजा चन्द्रच्छाय राज्य करता था। उस नगरी में बहुत से नौ-प्रणिक (नौका द्वारा व्यापार करनेवाले ) रहते थे जो समृद्धिशाली और अपरिभूत थे। वे बार-बार लयण-समुद्र की यात्रा करते थे। उनमें अहन्नक नामक एक श्रमणोपासक था। . एक थार समुद्र यात्रा से लौटते समय अईन्नकादि नौ-यात्रिक दक्षिण दिशा में स्थित मिथिला नगरी पहुँचे । उन्होंने उद्यान में अपना पड़ाव डाला। बहुमूल्य उपहार एवं कुण्डल युगल लेकर वहां के राजा कुम्भ की सेवा में पहुँचे और. हाथ जोड़कर विनय पूर्वक उन्होंने यह भेट महाराजा को प्रदान की। महाराजा कुम्भ ने मलिकुमारी को बुला दिव्य कुण्डल उसे पहना दिया। इसके बाद उन्होंने अर्हन्नादिक वणिकों का बहुत सम्मान किया। महसूल माफकर उन्हें रहने के लिए एक बड़ा आवास दे दिया। वहां कुछ दिन व्यापार करने के बाद उन्होंने अपने जहाजों में चार प्रकार का किराना भरकर समुद्र-मागे से चंपानगरी की ओर प्रस्थान कर दिया। चम्पा नगरी में पहुंचने पर उन्होंने बहुमूल्य कुण्डल युगल वहाँ के महाराजा चन्द्रच्छाय को भेंट किया। अंगराज चन्द्रच्छाय ने भेंट को स्वीकार कर अहंन्नकादि श्रावकों से पूछा-"तुम लोग अनेकानेक ग्राम-नगरों में घमते हो। चारबार व्यण समुद्र की यात्रा करते हो। बताओ, ऐसा कोई आश्चये है जिसे तुमने पहली बार देखा हो।" . अर्हन्तक अमो. योग इस बार व्यापारार्थ मिथिला नगरी भी गये थे। वहाँ हमलोगों ने कुम्भ महाराज को दिव्यकंडल-यगल मेंट की। महाराजा ने अपनी पुत्री मल्लिकुमारी को बुलाकर वे दिव्य कुंडल उसे पहना दिये। मलिकमान हमने वहाँ एक आश्चर्य के रूप में देखा। विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्लिकुमारी जितनी सुन्दर है उतनी सुन्दर देवकन्यायें भी नहीं देखी जाती।" महाराज चन्द्रच्छाय ने अईन्नकादि व्यापारियों का सत्कार सम्मान कर उन्हें विदा किया। व्यापारियों के मुख से मल्लिकुमारी की ऐसी प्रशंसा सुनकर महाराज चन्द्रच्छाय उसपर अनुरक्त हो गये। टन को बुलाकर कहा-"तुम मिथिला नगरी जाओ और जाकर कुम्भराजा से मल्लिकुमारी को मेरी भार्या के रूप में अगर कन्या के बदले में वे मेरे राज्य की भी मांग करें, तो स्वीकार कर लेना।" महाराजा का सन्देश लेकर दत मिथिला पहुंचा। साधर्म अ05 के आधार पर Scanned by CamScanner

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